The Bhramjaal में एक बार फिर आपका स्वागत है। यह पिछले लेख का Part-2 है, How to counter wahhabism? अगर पिछला लेख आपने नहीं पढ़ा तो पहले उसे प...
The Bhramjaal में एक बार फिर आपका स्वागत है। यह पिछले लेख का Part-2 है, How to counter wahhabism? अगर पिछला लेख आपने नहीं पढ़ा तो पहले उसे पढ़े - Wahhabism क्या है? कैसे काम करता है?
वहाबीवाद से लड़ा कैसे जाये?
सिर्फ भारत के संदर्भ में बात करें तो Right Wing Ideology वाले जैसी क्रिया की प्रतिक्रिया बता कर लड़ने की रणनीति बताते हैं वह तो और समस्यायें पैदा करने वाली है। गोधरा में कुछ सिरफिरे मुसलमान कोच जलायेंगे तो प्रतिक्रिया में बाकी गुजरात के उग्र हिंदू 2000 से ज्यादा उन मुसलमानों को कत्ल कर देंगे जो घटना के दोषी नहीं थे।
फिर बिना वजह जो इस कत्लेआम के शिकार हुए लोगों का होता सोता बचेगा वह हथियार उठा कर Indian Mujahideen बना लेगा। देश के बाहर ऐसे आक्रोशित युवाओं को लपकने के लिये सौदागर पैसा और हथियार लिये तैयार बैठे हैं। और फिर वे बम धमाके करेंगे आप फिर पलट के प्रतिक्रिया करोगे, फिर नये शिकार उस आक्रोश की खेती से पनपेंगे इस तरह तो अराजकता की स्थिति ही बनेगी।
ऐसे हालत में वे रोहिंग्या से तुलना करने बैठ जाते हैं। रोहिंग्या उस म्यामार से ताल्लुक रखते हैं जहां किसी की दिलचस्पी नहीं लेकिन भारत एक महाशक्ति है और इसमें बहुतेरे देशों की दिलचस्पी है इसे अस्थिर करने के मौके बनेंगे तो बड़े-बड़े देशों की दिलचस्पी इसमें पैदा हो जायेगी। यहां हालात बिगड़े तो संभालना भी मुश्किल हो जाएगा।
Counter wahhabism
प्रतिक्रिया के नाम पर हिंसा, इस विचारधारा से लड़ने का समाधान नहीं हो सकती। इसके लिये न सिर्फ सरकारी बल्कि सामाजिक प्रयास भी करने पड़ेंगे। कुछ सरकार करे और कुछ वह लोग और संस्थायें करें जो इसकी समझ रखती हैं लक्ष्य सिर्फ उस कट्टरता से मुक्ति हो जो किन्हीं कमजोर पलों में इंसान को हथियार उठाने की तरफ धकेल देती है। भारतीय मुस्लिमों में एक बड़ा तबका कट्टर जरूर हुआ है लेकिन अभी भी इस तथाकथित 'जिहाद' की तरफ उसका रुझान कतई नहीं है और भविष्य में हो भी न, इसके लिये कोशिश होनी चाहिये।
'जिहाद' के तो जिक्र पर भी पाबंदी होनी चाहिये, चाहे इसकी व्याख्या 'जिहाद अल नफस' के रूप में कितनी ही उदार क्यों न हो। धर्म के नाम पर चलते इदारों को सरकारी नजरबंदी में लिया जाये। मदरसों को दुनियावी शिक्षा का केंद्र बनाया जाये और धार्मिक शिक्षा भी एक सीमित लेवल पर तब एलाऊ हो जब बच्चा थोड़ा मैच्योर हो जाये। बचपन से धार्मिक शिक्षाओं का प्रभाव बच्चे को भारत के बजाय सऊदी अरब के करीब धकेल देता है।
सामाजिक स्तर पर इस टाईप की मजलिसों, बैठकों, इज्तमाओं में, बजाय एकरूपता के विविधता की खूबसूरती समझाई जाये। समावेशी संस्कृति की अहमियत और स्वीकार्यता पर बल दिया जाये और यह कोई मुश्किल काम नहीं। मुस्लिम युवाओं के लिये सिर्फ शिक्षा ही काफी नहीं बल्कि उनमें यह समझ भी विकसित करने की कोशिश करनी चाहिये कि साझी संस्कृतियों के साथ समन्वय किस तरीके से हो और उन्हें इस हद तक सहनशील होने की भी जरूरत है कि कोई भी चीज आलोचना से परे नहीं हो सकती न खुदा, न उसके नबी या पैगम्बर और न धार्मिक किताबें।
आप इब्ने तैमिया, अब्दुल वहाब, मौलाना मौदूदी के मॉडल से हट कर Islam के नाम पर भारत में पाये जाने वाले सभी फिरकों को उनकी संस्कृति, रिवाजों, परंपराओं के के साथ इस्लाम का हिस्सा स्वीकार करने और कराने पर जोर दीजिये बजाय उन्हें काफिर, मुशरिक, मुनाफिक, खारिजी, राफजी वगैरह करार देने के, तो खुद-ब-खुद यह कट्टरता कम हो जायेगी। लोगों को यह समझ होनी जरूरी है कि वे भारतीय हैं कोई सऊदी नहीं और उन्हें भारतीय जैसा दिखने की जरूरत है न कि अरबी जैसे दिखने की।
इसे भी पढ़िए: How did Muslims become orthodox?
यह उपाय भी भारत में ही कारगर हैं क्योंकि यहां के मुसलमान कई पैमानों पर दुनिया के दूसरे मुसलमानों से अलग हैं। बाकी दुनिया के लिये कोई रास्ता सुझाना मुश्किल है। या तो वे पाकिस्तान, अफगानिस्तान की तरह आपस में लड़ेंगे, या सीरिया, इराक की तरह अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, Israel आदि की स्वार्थ पूर्ति का शिकार हो कर खुद को तबाह करेंगे, क्योंकि असली इस्लाम ही वही है।
Ori. Author - Ashfaq Ahmad
कोई टिप्पणी नहीं
PLEASE NOTE:
We have Zero Tolerance to Spam. Cheesy Comments and Comments with 'Links' will be deleted immediately upon our review.