द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम बात करेंगे भारत में विश्वकर्मा जयंती का क्या विवाद है? विश्वकर्मा जयंती मनाने ...
द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम बात करेंगे भारत में विश्वकर्मा जयंती का क्या विवाद है?
विश्वकर्मा जयंती मनाने की शुरुआत सर्वप्रथम 1926 में बिहार के ठाकुर शर्मा ने की थी। ठाकुर शर्मा ने ही वहां विश्वकर्मा भगवान का मंदिर भी बनवाया था।
आपने कभी सोचा है कि हिन्दू धर्म का त्यौहार जैसे- होली, दीपावली, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी आदि हर वर्ष अलग-अलग तारीखों में पड़ते हैं, किन्तु विश्वकर्मा पूजा हिन्दू तिथि अनुसार न हो कर हर वर्ष निश्चित रूप से 17 सितम्बर को ही क्यों पड़ता है?
अब तक नहीं सोचा तो अब सोचिए...
Vishwakarma Jayanti | विवाद क्या है?
ई.वी. रामास्वामी नायकर जिन्हें आप पेरियार के नाम से भी जानते हैं ने लिखा था कि-
"नास्तिक होना आसान नही कोई भी इंसान ईश्वर के अस्तित्व को मान कर फ्री हो जाता है उस में बुद्धि की आवश्यकता नही होती परंतु नास्तिक होने के लिए दृढ़ विश्वास और साहस की जरूरत होती है, ऐसी योग्यता उन लोगो के पास होती है जिनके पास प्रखर तर्क बुद्धि होती है, अंधश्रद्धा ऐसा केमिकल है जो इंसान को मूर्ख बनाने मे काम आता है।"
विश्वकर्मा जयंती पर Vivad Kya Hai? दरअसल आलोचकों का कहना है कि तर्कवादी नास्तिक पेरियार का जन्मदिन 17 सितम्बर को आता है।
तो परजीवी ब्राह्मणों के लिए पेरियार के तार्किक विचार को प्रसारित होने देने का मतलब था कि वो भूखे मर जाएं। अतः धूर्तों के लिए पेरियार को लोगों की जानकारी से ओझल कराना बहुत जरूरी हो गया था। अतः Vishwakarma Jayanti को रचा गया।
पेरियार की ताकत का अंदाजा तो इसी बात से लगा लें कि ब्राह्मणों ने ब्राह्मण धर्म के देवता Vishwakarma को ईसाई कैलेंडर के हिसाब से पैदा कर दिया। ताकि पेरियार को भारत के जनमानस से मिटाया जा सके..! असली नायक पेरियार पर धूल चढ़ाने और काल्पनिक देवता देकर भरमाने वाले ब्राह्मणों, देश और दुनिया तुम्हें माफ नहीं करेगी।
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