द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम बात कर रहे है, 1998 में प्रदर्शित फिल्म The Truman Show की। क्या ट्रूमैन शो की...
द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम बात कर रहे है, 1998 में प्रदर्शित फिल्म The Truman Show की। क्या ट्रूमैन शो की तरह हमारी दुनिया भी महज एक शो है?
लगभग 26 साल पहले रिलीज हुई यह फिल्म आज प्राइम वीडियो पर उपलब्ध The Truman Show कहानी है एक युवक "ट्रूमैन बरबैंक" की। ट्रूमैन सीहैवन नामक एक आइलैंड पर अपनी शानदार जिंदगी बिता रहा है, अच्छी नौकरी है, सुंदर पत्नी है। कुल-जमा जिंदगी में सब बढ़िया है, सिवाय एक चीज के - उसका जीवन वास्तव में एक भ्रम है।
वास्तव में वह एक टेलीविजन रिएलिटी शो का मुख्य किरदार है, जिसे एक टीवी निर्माता कंपनी ने पैदा होते ही कानूनन गोद ले लिया था। वह आइलैंड वास्तव में आकाश का चित्रण करने वाले एक कृत्रिम गुंबद (डॉम) के नीचे मौजूद एक विशालकाल स्टूडियो सेट है, और ट्रूमैन के सभी जानने वाले वास्तव में कलाकार हैं, जो बस अपना किरदार निभा रहे हैं। ट्रूमैन की हंसी, उसकी खुशी, उसमें कृत्रिम रूप से विकसित किये गए भय, उसकी पूरी जिंदगी शो के निर्माताओं के लिए एक मनोरंजन मात्र है, जिसे वे अरबों लोगों की मानसिक खुराक हेतु टीवी शो के रूप में परोसते हैं।
जल्द ट्रूमैन को एहसास हो जाता है कि कुछ गड़बड़ है और वह एक भ्रामक दुनिया में जी रहा है। सच्चाई का पता लगाने निकले नायक को रोकने के लिए उसका ईश्वर (शो का निर्माता) तमाम हथकंडे अपनाता है। उसे भावुक करता है, डराता है, और अंत में ट्रूमैन की जान लेने तक पर उतारू हो जाता है। पर ट्रूमैन हार नहीं मानता और अंततः इस भ्रामक सेट की अंतिम सीमा यानी डॉम के किनारे तक पहुंच जाता है।
अंतिम दृश्य में शो का निर्माता आकाशवाणी (डॉम में फिट स्पीकर) के जरिये ट्रूमैन से संवाद करता है। उसे इस दुनिया से बाहर न निकलने का आदेश देकर कहता है कि - मैंने तुम्हारे जीवन के हर क्षण तुम्हे देखा है। जब तुम हंसे, जब तुम रोये, जब तुमने पहला डग भर के चलना सीखा, जब तुमने गिर के संभलना सीखा - हर एक क्षण मैं तुम्हे देख रहा था। मैं जानता हूँ कि - तुम यही रहने के लिए ही बने हो।
ट्रूमैन एक गहरी मुस्कुराहट के साथ सिर्फ इतना कहता है कि - तुमने मुझे देखने के किये बेशक मेरी दुनिया में हजारों कैमरे लगाए होंगे पर एक भी कैमरा मेरे दिमाग के भीतर लगाने में कामयाब नहीं हुए। इतना कह कर नायक द्वार को पार कर दूसरी ओर निकल जाता है - एक अज्ञात और वृहद सत्य का सामना करने के लिए।
कल यह फ़िल्म दोबारा देखने के बाद आंखें बंद कर लेटा रहा और न जाने कितने विचार मस्तिष्क में उमड़ते रहे।
मनुष्यों को विरासत में एक ऐसा विषम और क्रूर संसार मिला, जहां होश संभालने से लेकर अब तक अपने इतिहास के 99.99% हिस्से में सिर्फ जीवित बने रहना ही हमारा प्रमुख उद्देश्य था।
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खूंखार पशुओं और प्राकृतिक आपदाओं से घिरा मनुष्य हमेशा नाना प्रकार के भय, अंदेशों और भोजन की चिंताओं से ग्रस्त रहा। प्रकृति ने ऐसी परिस्थितियां कभी दी ही नहीं कि मनुष्य के पास अस्तित्व पर मनन करने का समय शेष रहे। बमुश्किल कुछ हजार साल पहले मनुष्य ने खेती करना सीखा, सरप्लस में अन्न उत्पन्न हुआ, जीवन सुखमय हुआ और सोचने का समय मिला।
विरासत में मिली तमाम विषमताओं से लड़ते-लड़ते एक लंबी यात्रा के बाद अंततः 50 साल पहले मनुष्य पृथ्वी से बाहर निकल कर अंतरिक्ष में पहुंचा तो एक असीमित ब्रह्मांड उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। सितारों की दूरियां ही इतनी विशाल हैं कि आधुनिक तकनीक के सहारे सबसे नजदीकी सितारे तक पहुंचने में ही 50 हजार साल लग जाएंगे। किसी तरह प्रकाश की गति से चलने वाला यान भी बना लिया जाए तो भी ज्ञात ब्रह्मांड के आखिरी छोर तक पहुंचने के लिए 47 अरब साल चाहिए।
इस जले पर नमक यह है कि ब्रह्मांड प्रकाश की गति से भी तेज प्रसारित हो रहा है। यानी कुल मिला कर ब्रह्मांड एक ऐसा कारागार प्रतीत होता है, जिससे बाहर निकल कर परम सत्य का साक्षात्कार कर पाना शायद हम इंसानों के लिए असंभव जैसा बना दिया गया है।
सोचता हूँ कि कैसा लगेगा हमें, अगर अंतिम सत्य अगर यह हुआ कि "क्यों - कैसे - किसकी इच्छा से" का प्रश्न ही निरर्थक था। अस्तित्व एक धोखा था, सत्य की खोज के मायने न था और व्यक्तिगत स्वतंत्रता सिर्फ एक भ्रम - वास्तव में हम "किसी और के" मनोरंजन का साधन मात्र थे।
सत्य की संभावनाओं का अंत नहीं। सत्य महान हो सकता है, विचित्र भी, और उसी अनुपात में "लज्जाजनक" भी। अगर चाहें तो Watch The Truman Show (1998) in Hindi Movie Here - Direct Link
Ori. Author - Vijay Raj Sharma
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