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चार्वाक दर्शन के 7 तर्कसंगत सच क्या हैं?

The Bhramjaal में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम जानेंगे कि [ Charvaka Philosophy In Hindi] में  चार्वाक दर्शन का 7 तर्कसंग...

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The Bhramjaal में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम जानेंगे कि [Charvaka Philosophy In Hindi] में चार्वाक दर्शन का 7 तर्कसंगत सच क्या है?

[Philosophy of life] चार्वाक दर्शन एक प्राचीन भारतीय दर्शन है जिसकी उत्पत्ति लगभग 600 ईसा पूर्व हुई थी। Charvaka Philosophy एक भौतिकवादी दर्शन है, जिसे नास्तिक दर्शन भी कहते हैं। साथ ही इसे लोकायत या लोकायतिक दर्शन भी कहा जाता है।

लोकायत का शाब्दिक अर्थ होता है ‘जो मत लोगों के बीच व्याप्त हो, जो विचार जनसामान्य में प्रचलित हो!’ यह दर्शन प्रत्यक्ष प्रमाण को मुख्य मानता है तथा पारलौकिक सत्ताओं को यह Darshan स्वीकार नहीं करता है। यह दर्शन वेदबाह्य भी कहा जाता है।

Indian Philosophy दो अंगों में विभाजित है!

  • आस्तिकता (ईश्वरवादी)
  • नास्तिकता (अनीश्वरवादी)

जो वेद को प्रमाण मानकर उसी के आधार पर अपने विचार आगे बढ़ाते थे वे आस्तिक (ईश्वरवादी) कहे गये।

नास्तिकता अथवा नास्तिकवाद या अनीश्वरवाद (English: Atheism), वह सिद्धांत है जो जगत् की सृष्टि करने वाले, इसका संचालन और नियंत्रण करनेवाले किसी भी ईश्वर के अस्तित्व को सर्वमान्य प्रमाण के न होने के आधार पर स्वीकार नहीं करता। नास्तिक दर्शन (अनीश्वरवादी) भारतीय दर्शन परम्परा में उन दर्शनों को भी कहा जाता है जो वेदों को नहीं मानते थे। भारत में कुछ ऐसे व्यक्तियों ने जन्म लिया जो वैदिक परम्परा के बन्धन को नहीं मानते थे वे नास्तिक कहलाये तथा दूसरे जो नास्तिक कहे जाने वाले विचारकों की तीन धारायें मानी गयी हैं - चार्वाक, जैन तथा बौद्ध।

पाणिनि व्याकरण में वर्णन है कि-

आस्ति नास्ति दिष्ट्ं मति।

अर्थात- जो परलोक और पुनर्जन्म को मानता है, वह आस्तिक है और जो नहीं मानता, वह नास्तिक है।

Charvaka Philosophy के रचियता कौन थे?

आचार्य चार्वाक प्राचीन भारत के एक अनीश्वरवादी और नास्तिक तार्किक थे। वह नास्तिक मत के प्रवर्तक बृहस्पति के शिष्य माने जाते हैं। आचार्य बृहस्पति और आचार्य चार्वाक कब हुए इसका कुछ भी पता नहीं है।

जैसे भारत में चार्वाक थे, वैसे ही ग्रीस में एपीकुरस थे। आज एपीकुरस की कम से कम एक मूर्ति उपलब्ध है, परन्तु चार्वाक की तो कोई छवि नहीं है।

चार्वाक दर्शन के 7 दार्शनिक आधार क्या है?

चार्वाक दर्शन का आधार निम्न बिन्दुओं पर है! इसमें-

  1. प्रत्यक्ष को ही प्रमाण माना गया।
  2. वेदों को सिरे से नकार दिया गया।
  3. ईश्वर के अस्तित्व को नकार दिया गया।
  4. वर्ण व्यवस्था और आश्रम व्यवस्था को नहीं माना गया।
  5. यज्ञ, पशुबलि, श्राद्ध एंव ब्राह्मणिय कर्मकाण्डों को नहीं माना गया।
  6. परलोक और पुनर्जन्म को नहीं माना गया।
  7. आत्मा पर सवाल खड़ा कर, जीव का अंत इसी दुनिया में माना।

Charvaka Realistic Philosophy है। जो निरी आस्था न रख कर परिवर्तनवादी और समतावादी (Egalitarian) दृष्टिकोण रखने की सलाह देता है। यानि इसे आप परस्पर सद्भावना आधारित सत्यवादी (Truthful) और ज्ञानमार्गी दर्शन कह सकते हैं।

प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानने से आशय है कि विशुद्ध न्यायवादी परम्परा में विश्वास न रख कर वर्तमान में विश्वास रखना। इसीलिए यह एक Rationalist Philosophy है।

Charvaka Philosophy In Hindi

[Charvaka Philosophy in Hindi] चार्वाक दर्शन वेदबाह्य भी कहा जाता है। वेदबाह्य में छ: दर्शन आते हैं- चार्वाक, माध्यमिक, योगाचार, सौत्रान्तिक, वैभाषिक, और आर्हत। इन सभी में वेद से असम्मत सिद्धान्तों का प्रतिपादन है।

मध्वाचार्य (1238-1317) के 'सर्वदर्शनसंग्रह' से चार्वाक दर्शन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

न स्वर्गो नापवर्गो वा नैवात्मा पारलौकिकः
नैव वर्णाश्रमादीनां क्रियाश्च फलदायिकाः
~ Charvaka Philosophy

चार्वाक ने इस श्लोक के माध्यम से घृणित जातिवाद को खुली चुनौती दी है।

पशुश्चेन्निहतः स्वर्गं ज्योतिष्टोमे गमिष्यति,
स्वपिता यजमानेन तत्र कस्मान्न हन्यते?
~ Charvaka Philosophy

मृतानामपि जन्तूनां श्राद्धं चेत्तृप्तिकारणम्।
गच्छतामिह जन्तूनां व्यर्थं पाथेयकल्पणम्।।
~ Charvaka Philosophy

स्वर्गस्थिता यदा तृप्तिं गच्छेयुस्तत्र दानतः
प्रासादस्योपरिस्थानमात्र कस्मान्न दीयते?
~ Charvaka Philosophy

इसे भी पढ़िए : नास्तिकता आज इतनी क्यों बढ़ रही है?

चार्वाक दर्शन - तर्कसंगत सत्य

  • चार्वाक दर्शन उस भूगोल को नहीं मानता जिस के अनुसार धरती बैल के सींगों पर अथवा शेषनाग के फन पर टिकी हुई है।
  • वह यह भी नहीं मानता कि धरती गाय बन कर देवताओं के पास जाती है। और पाप का बोझ हल्का करने के लिए देवताओं से प्रार्थना करती है।
  • वह उस भूगोल को भी नहीं मानता जिस में पृथ्वी ऐसी देवी है जिस के लिए शांति पाठ या नवग्रह पूजा की जाती है। “भूगोल-भूगोल” रटने वालों, भू (धरती) गोल नहीं, अंडाकार है। तुम उसे “अचला” कहते हो, परंतु वह तो "चला" (गतिशील) है।

चार्वाक दर्शन का तर्कसंगत सच यह है कि इन मतों का खण्डन करना प्रायः असाध्य है।

बहुत से लोग आचार्य चार्वाक का एक उदाहरण देते हैं -

यावज्जीवेत सुखं जीवेद ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत !
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः !!

अर्थात - जब तक जीवन है, सुख से जीओ। ऋण ले कर घी पियो देह नष्ट होने के बाद कोई पुर्नजन्म नहीं होता।

आचार्य चार्वाक की यह बात भी तार्किक रूप से बिल्कुल सही है। "जब तक जीओ सुख से जीओ"। आज ऐसा हर व्यक्ति कर रहा है। सुख से जीने के लिए ही मानव ने विकास किया है। घर बनाना, भिन्न-भिन्न तरह के भोजन करना, उद्योग लगाना, कपड़े पहनना, छोटी बड़ी कारें, मोबाइल फोन आदि यह सब सुख के ही तो साधन हैं। आज कौन ऐसा व्यक्ति है जो सुख से नही जीना चाहता? सब आचार्य चार्वाक के दर्शन पर ही तो चल रहे हैं।

दूसरी बात यानी 'ऋण लेकर घी पियो', ये आधी-अधूरी बात है। आचार्य चार्वाक ने कभी नहीं कहा कि ऋण लेने के बाद उसे चुकाओ मत।

संसार में सभी व्यक्ति अपने सुख के लिए कभी न कभी ऋण लेते हैं, चाहे छोटा हो या बड़ा। आज की बैंकिग प्रणाली पूरी तरह से चार्वाक दर्शन पर ही चलती है। बैंक ऋण देता है, जिससे एक आम व्यक्ति की जरूरतें पूरी होती हैं ताकि वह सुख से जीवन व्यतीत कर सके।

एक व्यक्ति जो उद्योग लगाना चाहता है, उसके पास स्किल है, हुनर है पर काम करने के लिए पूंजी नही है। वह बैंक से ऋण लेता है और अपना उद्योग लगाता है, पैसे कमाता है, सुखी जीवन जीता है। फिर वह बैंक का ऋण चुका देता है। यही तो चार्वाक कहते हैं, यही उनके दर्शन का सार है।

एक व्यक्ति पैदल चलता है, पर उसके पास पैसे नही है कि वह मोटरसाइकिल खरीद ले, वह मोटरसाइकिल फाइनेंस करवा लेता है, सुख से जीता है, पैदल नही चलता है। फिर धीरे-धीरे वह क़िस्त चुका देता है।

आचार्य चार्वाक ने भी यही कहा है, आज सभी उन्ही के दर्शन को फॉलो करते हैं। लेकिन जानते नहीं।

चार्वाक ने उधार न चुकाने की बात कभी नहीं कही, ऐसा कोई प्रमाण उनकी विरोधी पुस्तकों में भी नहीं है। आप इस बात को खुद समझिए कि जब आचार्य बृहस्पति को चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र ग्रन्थ में अर्थशास्त्र का एक प्रधान आचार्य माना है। तो अर्थशास्त्र के प्रधान ने ऐसा कैसे कहा होगा।

न्याय प्रणाली में चार्वाक दर्शन

आचार्य चार्वाक ने कहा कि जो प्रत्यक्ष है ज्ञानेन्द्रियों से समझा जा सके उसे ही मान्यता दिया जाए, बाकी अप्रत्यक्ष अनुमान और काल्पनिक चीजो को नकार दिया जाए। वह प्रत्यक्ष अनुमान को प्रमाण मानते हैं, जैसे बादलों को देख कर वर्षा का अनुमान लगाना, दूर धुंआ देख कर आग होने का अनुमान लगाना, यहां बादल और धुंआ प्रत्यक्ष हैं। पर अप्रत्यक्ष अनुमान वह है जहां प्रत्यक्ष की भी कल्पना कर ली जाती है और उसके आधार पर अप्रत्यक्ष अनुमान लगाया जाता है। जैसे स्वर्ग, नर्क, ईश्वर आदि।

आज की न्याय प्रणाली भी चार्वाक दर्शन पर ही चलती है। विश्व की अधिकतर न्याय पालिकाएं भी प्रत्यक्ष अनुमानों या प्रत्यक्ष प्रमाणो के आधार पर ही न्याय करती हैं। न्यायालय में न्यायधीश के समक्ष भी किसी को अपराधी साबित करने के लिए प्रत्यक्ष प्रमाणों की आवशयकता होती है। यदि कोई गवाह यह कहे कि 'अमुक व्यक्ति ने यह अपराध किया है ऐसा मेरा अनुमान है, या ऐसा मैंने सुना था' तो न्यायाधीश इस अप्रत्यक्ष अनुमान पर अपराधी को दोषी नहीं ठहरा सकता।

न ही न्यायपालिका किसी अपराधी को 'अगले जन्म में फल मिलेगा' के आधार पर उसे मुक्त कर देती है। जो भी अपराध है उसकी सजा इसी जीवन में मिलेगी। इस तरह से विश्व का कानून भी चार्वाक सिद्धान्तो को अपनाता है।


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