The Bhramjaal में एक बार फिर आपका स्वागत है। [Atma] आज की चर्चा में हम जानेंगे कि आत्मा का भ्रमजाल क्या है? अक्सर ऐसे कई तरह के प्रश्...
The Bhramjaal में एक बार फिर आपका स्वागत है। [Atma] आज की चर्चा में हम जानेंगे कि आत्मा का भ्रमजाल क्या है?
अक्सर ऐसे कई तरह के प्रश्न आपके मन में भी उपजते होंगे। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि जो लोग Atma पर विश्वास करते हैं, वे किसी निकटतम की मृत्यु पर फूट-फूट क्यों रोते देखे जाते हैं? जब Aatma मरती ही नहीं तो फिर उनके विलाप का क्या अर्थ है? लगता तो ऐसा है कि आपको स्वयं के विश्वास पर ही भरोसा नहीं है। यानि कि Life after death जैसे विश्वास भी आपको में सुख नहीं देते?
आपने सुना होगा कभी Karl Marx ने इन अंधविश्वासो को एक तरह का नशा कहा था। और सच भी है कि, ये नशे से ज़्यादा कुछ भी नहीं हैं। दरअसल Aatma या Rooh की जिज्ञासाएँ Khuda/Ishwar के कॉन्सेप्ट तक पहुंच कर खत्म हो जाती थी इंसान का Dharm/Mazhab उसे समझा देता है कि जीवन और मौत का खेल ऊपर वाले के हाथों में है। Insaan तो ऊपर वाले के हाथों की कठपुतली मात्र है।
Mazhab ने समझा दिया कि इंसान के शरीर में एक Aatma होती है। जो मृत्यु के बाद परमात्मा से मिलती है। दोबारा कर्मों के हिसाब से उसका Punarjanam होता है। या फिर रूह को खींच लिया जाता है और आख़िरत तक के लिए उसे 'बज़रख' में रख दिया जाता है। वगैरह वगैरह...
आत्मा का रहस्य क्या है?
आत्मा का पूरा वजूद काल्पनिक है। धर्म और मजहबों की यह सारी बातें झूठी हैं किसी Aatma या Rooh का कोई वजूद नहीं होता है। Human Body में आत्मा [Soul] जैसी किसी चीज़ का कहीं Existence नहीं होता। यह एक छलावा मात्र है।
अध्यात्म के नाम पर आत्मा जैसा Fraud Create किया गया है। इसलिए पूरी दुनिया में किसी भी Medical University में आत्मा का कोई डिपार्टमेंट नहीं है। ना ही Medical Science आत्मा के ऊपर कोई बात करती है। सदियों से आत्मा पर जो भी रिसर्च हुए हैं सब में यही कहा गया कि यह काल्पनिक [Hypothetical] है। यहां तक की पूरा अध्यात्म Fraud और Conspiracy पर आधारित है।
आप स्वयं सोचिए कि आख़िर मरने के बाद ही आत्मा की शांति क्यों की जाती है? आत्मा कोई पाग़ल तो है नहीं कि मरने के बाद पगला जाती हो? जैसे हमें अपने पैदा होने का पता नहीं चलता वैसे ही मरने का भी पता नहीं चलता।
इस्लाम में रूह का भ्रमजाल क्या है?
रूह का भ्रम फैलाने के लिए इस्लाम में कहा गया कि मरने के बाद Allah सभी मनुष्यों की आत्माओं जो कि एक 'बज़रख' नाम के स्थान पर एकत्रित हो रही है। क़यामत के दिन अल्लाह वहां से उठा कर कर्मों के हिसाब से उन्हें जन्नत या दोज़ख [Dozakh] में डालेगा।
यदि Islam का ही Concept समझें तो प्रश्न यह खड़ा होता है कि यदि सभी रूहें क़यामत के दिन तक के लिए बज़रख में जमा हो रही हैं तो मुसलमानों के बच्चे कैसे पैदा हो रहे हैं? क्योंकि पुरानी आत्माएं तो बज़रख में इकट्ठी हो रही हैं, तो जो आत्मायें बच्चों के रूप में पैदा हो रही है वो कहां से आती हैं?
हिन्दू धर्म में आत्मा का भ्रमजाल क्या है?
हिन्दू धर्म में ईश्वर मनुष्य के कर्मो के अनुसार संसार की समस्त 84 लाख योनियों में उन्हें भटकाता है। ऐसा श्रीमद्भगवद्गीता के Chapter: 2, Shloka: 27 में कहा गया है:–
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि॥श्रीमद्भगवद्गीता- 2.27
Hindi Meaning :- जन्मने वाले की मृत्यु निश्चित है और मरने वाले का जन्म निश्चित है। इसलिए जो अटल है अपरिहार्य है, उसके विषय में शोक नहीं करना चाहिये।
श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया कि Atma कभी नहीं मरती। मृत्यु के बाद ईश्वर Aatma को न्याय देकर उसे दोबारा जन्म लेने का अधिकार देते हैं। इसलिए Aatma का स्वरूप मान कर शत्रु की हत्या को भी उचित ठहरा दिया गया। यह कहना ज्यादा उचित होगा कि आत्मा का भ्रमजाल पूर्णताः धर्मग्रन्थों व धर्मगुरुओं का फैलाया हुआ है।
जीवन, मृत्यु व आत्मा को समझिए
ऐसा वक़्त आ चुका है कि आत्मा के भ्रमजाल को समझा व समझाया जाए। जिससे अंधविश्वासों को तिलांजलि देकर मृत्यु का निडरता से सामना किया जा सके। अगर आप वैज्ञानिक सच को स्वीकार कर थोड़ा चिंतन-मनन करके अपनी समझदानी में यह बात बैठा लें कि हर इंसान हौले-हौले अपनी मृत्यु की तरफ बढ़ रहा है तो आपको सभी से प्रेम करने में ज्यादा आसानी होगी। वरना इस्लामी आतंकवादियों की तरह मृत्यु उपरांत जीवन की आशा में, जीवित लोगों को मारना अपना धर्म समझते रहेंगे।
गीता में आत्मा पर अन्तर्विरोध कैसा है?
गीता के वो श्लोक जो सबसे ज्यादा कोट किए जाते हैं। धर्मगुरुओं ने इन्हीं का सबसे ज्यादा प्रचार किया है, परन्तु गीता में भी आत्मा को लेकर अन्तर्विरोध है जो अपने आप में विरोधाभासी भी है। यह आपको कोई नहीं बताता है
गीता के Chapter: 2, Shloka: 22 में कहा गया है कि:
Hindi Meaning :- जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रो को त्याग कर दुसरे नवीन वस्त्रो को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को त्याग कर दूसरे नवीन शरीर को ग्रहण करती है।
गीता के Chapter: 2, Shloka: 24 में कहा गया है कि:–
Hindi Meaning :- आत्मा अच्छेद्य (काटी नहीं जा सकती), अदाह्य (जलायी नहीं जा सकती), अक्लेद्य (गीली नहीं हो सकती) और अशोष्य (सुखाई नहीं जा सकती) है। यह नित्य, सर्वगत, स्थाणु (स्थिर), अचल और सनातन है।
अन्तर्विरोध को समझिए!
पहले श्लोक 2.22 में कहा गया है कि Aatma पुराने शरीर को त्याग कर नए शरीर को ग्रहण करती है, परन्तु दूसरे श्लोक 2.24 में यह भी कहा गया कि आत्मा अचल है, Aatma सब में समाई हुई है, सर्वगत है। यह दोनों बातें एक साथ और एक ही वस्तु पर कैसे सत्य सिद्ध हो सकती हैं? जो अचल है, सर्वगत है, स्थिर है उसके एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना कैसे संभव होगा?
उपनिषद में आत्मा का स्वरूप
कठोपनिषद के अध्याय 2> वल्ली 3> Verse 17 में कहा गया है कि –
Hindi Meaning :- ''पुरुष, अन्तरात्मा, जो अङ्गुष्ठमात्र है, वह सदा प्राणियों के हृदय में आसीन है। 'उसे' अपने शरीर से उसी प्रकार धैर्यपूर्वक पृथक् करना चाहिये जैसे कोई मूँज से उसकी सीक को पृथक् करता है। 'उसे' तुम 'तेजोमय' 'अमृत-तत्व' जानो।"
वहीं दूसरे मुण्डकोपनिषद् के तृतीय मुण्डकः> प्रथम: खण्ड> Verse 9 में आत्मा को अणु के बराबर बताया गया है –
The Bhramjaal · Muṇḍakopaniṣad - 4.3.1.9
एषोऽणुरात्मा चेतसा वेदितव्यो यस्मिन् प्राणः पञ्चधा संविवेश।
प्राणैश्चित्तं सर्वमोतं प्रजानां यस्मिन् विशुद्धे विभवत्येष आत्मा॥
मुंडकोउपनिषद- 3/1/9
Hindi Meaning :- 'आत्मा' अणुवत् सूक्ष्म है तथा इसे विचारात्मक मन (चित्त) के द्वारा जाना जाता है जिसमें प्राण ने पञ्चविध प्रवेश किया है। प्राणियों का सचेतन मन (चित्त) प्राणों से ओत-प्रोत है जिसके विशुद्ध हो जाने पर ही यह 'आत्मा' अपनी शक्ति को अभिव्यक्त कर सकती है।
यदि आत्मा अंगूठे के बराबर है तो वह अणु के बराबर नहीं हो सकती, जो अणु के बराबर है वो अंगूठे के बराबर हरगिज नहीं हो सकती। आप धर्मगुरुओं से खुद पूछिये कि धर्मग्रन्थों में कैसा आत्मा का भ्रमजाल फैला हुआ है? ऐसे 'ब्रह्मज्ञान' को कोई भी free thinker कैसे मान सकता है? इसलिए कहना ही पड़ेगा कि यह सब एक 'भ्रमजाल' है।
अगर बहुत पहले आप Aatma ka bhramjaal kya hai? जैसे प्रश्न उठा कर इस बात को समझ लेते कि मृत्यु के बाद कुछ नहीं है, तो समाज के दबे-कुचले लोगों को न्याय की उम्मीद कहीं ज्यादा होती। क्योंकि मरने वाले और मारने वाले, दोनों में से किसी के पास भी मृत्यु के बाद ईश्वर से न्याय की उम्मीद ही न बचती। साथ ही स्वर्ग-नर्क मिलने की आशा भी न होती।
कब से फैला आत्मा का भ्रमजाल?
जिस समय से पृथ्वी पर एक कोशिकीय जीव के रूप में जीवन की शुरुआत हुई थी, उस समय से ही स्वयं को खतरे से बचाने की प्रवृत्ति और जीवन को सुरक्षित रखने की प्रवृत्ति का जन्म जीवों के अंदर एक अविभाज्य अंग के रूप में हुआ। वो जीव जिनमे स्वयं को बचाने की प्रवृत्ति नहीं थी वो पृथ्वी से विलुप्त हो गये। यही प्रवृत्ति विकास के क्रम में मानव तक पहुँचने पर भय के रूप में स्थापित हुई। मौत जीवन के लिये सिर्फ एक छोटी या बड़ी समस्या भर नहीं है बल्कि यह जीवन को पूरी तरह ख़ारिज करने की घटना है।
जीवन को बचाने की प्रवृत्ति का अधिकतम रूप मृत्यु के प्रति भय के रूप में प्रदर्शित होता है। हमेशा के लिए पूरी तरह से ख़त्म हो जाने का विचार हमारे मन में खलबली मचा देता है। जीवन को बचा पाने की ललक, जीवन को पाने की भूख का परिणाम यह हुआ कि प्राचीन काल से मानव ने उस Aatma की Life after death जैसी परिकल्पना कर ली, जो मृत्यु से परे है।
क्यों चेतना को आत्मा कहा गया?
वहीं Aatma ka bhramjaal जैसी परिकल्पना को स्थापित करने में एक और मानवीय गुण ने साथ दिया, वह गुण उसने विकास (Evolution) के क्रम में पाया, जिसे चेतना (Consciousness) कहते हैं। यह विचार (Thought) या बोध (Perception) आदि, गुणों के लिए एक सामान्य नाम भर है। हमारे हाथ, पैर, आँख, नाक, पेट, छाती आदि नहीं हैं, बल्कि इस सब के अंदर कुछ रहता है, ऐसा विचार हमें चेतना की वजह से आता है।
इसलिये प्राचीन मानव के विचार में Aatma की परिकल्पना आयी। शरीर से अलग Atma की परिकल्पना ने ही प्राचीन समय में भूत-प्रेत की परिकल्पना को भी जन्म दे दिया। धीरे-धीरे मानव सभ्यता के उद्भव में धर्मों का जन्म हुआ, और Atma की परिकल्पना ने धर्मों के अंदर ठोस रूप ले लिया।
भारत में Aatma के बारे में जो समझ पैदा हुई वो यह थी कि Atma, परमात्मा का ही छोटा हिस्सा है जो अलग-अलग योनियों में पुनर्जन्म लेता है। जब पाप व पुण्य बराबर हो जाते हैं तो वापस परमात्मा में मिल जाता है, जिसे मोक्ष मिल जाना कहते हैं।
वहीं यहूदी, ईसाई, इस्लाम धर्म ने माना कि मृत्यु के बाद Life after death - Atma यानि रूह क़यामत के दिन का इंतज़ार करती है और उस दिन पाप और पुण्य के आधार पर स्वर्ग या नर्क में जाती है।
प्राचीन मिस्र के लोगों का भी मानना था कि मरने के बाद इंसान एक लंबे सफ़र पर निकल पड़ता है। ये सफ़र बेहद मुश्किल होता है जिसमें वो सूर्य देवता की नाव पर सवार होकर 'The Hall of Double Truth' तक पहुंचता है। यहां सच और न्याय की देवी की कलम के वज़न की तुलना इंसान के दिल के वज़न से की जाती है।
प्राचीन मिस्र के लोगों का मानना था कि इंसान के सभी भले और बुरे कर्मों का हिसाब उसके दिल पर लिखा जाता है। अगर इंसान ने सादा और निष्कपट जीवन बिताया है तो उसकी Aatma का वज़न पंख की तरह कम होगा और उसे Osiris के स्वर्ग में हमेशा के लिए जगह मिल जाएगी। किंवदंतियों के मुताबिक़, सच्चाई का पता लगाने वाले इस हॉल में Aatma का लेखा-जोखा देखा जाता है और उसका फ़ैसला होता है।
आधुनिक जीव विज्ञान क्या कहता है?
लेकिन Modern Biology- Life after death - aatma के अस्तित्व को पूरी तरह गलत साबित करती है। इसी प्रकार भूत, पुनर्जन्म, स्वर्ग, नर्क आदि सभी परिकल्पनाओं को भी गलत साबित करती है। आधुनिक विज्ञान की बहुत सी बातें व्यावहारिक बुद्धि से समझी नहीं जा सकतीं, जैसे कि आइंस्टीन की "General theory of relativity", जिसके अनुसार समय और स्थान वक्राकार हैं।
वैसे ही आधुनिक जीव विज्ञान के इस कथन को समझना आसान नहीं कि हमारे अंदर कोई Atma नहीं होती। फिर भी, साधारण लोगों की समझ के लिये एक किताब प्रसिद्ध वैज्ञानिक फ्रांसिस क्रिक द्वारा लिखी गयी जिन्हे 1962 में नोबल पुरस्कार मिला था। उस किताब का नाम है The Astonishing Hypothesis: The Scientific Search For The Soul (Vigyaan Dwara Atma Ki Khoj) अगर Atma नहीं है। तो फिर...
जीवन और मृत्यु क्या है?
जीव विज्ञान के अनुसार जीवन कोई वस्तु, शक्ति या ऊर्जा नहीं है बल्कि यह कुछ गुणों के समूह का सामान्य नाम है जैसे की उपापचय, प्रजनन, प्रतिक्रियाशीलता, वृद्धि, अनुकूलन (Metabolism, Reproduction, Responsiveness, Growth, Adaptation) आदि। अभी तक हम जितना जानते हैं उसके अनुसार ये गुण जटिल कार्बन यौगिकों के मिश्रण द्वारा प्रदर्शित होते हैं जिन्हे कोशिका के नाम से जाना जाता है। उसमें से सबसे सरल कोशिका है, Virus! जिसे शायद आप जानते होंगे।
क्या कोशिकाओं का समूह ही जीव है?
अपनी सहज प्रवृत्ति की वजह से यदि यह कोशिकाएं एक दूसरे के साथ सहयोग करती हैं और किसी वातावरण में एक साथ रहती है तो वे एक समूह बनाती है जिसे हम जीव कहते है। अगर किसी जीव में कुछ कोशिकाएं बाकि कोशिकाओं के सहयोग में नहीं रहती तो उसे कैंसर कहते हैं। जब ज़्यादा से ज़्यादा कोशिकाएं एक दूसरे के सहयोग में आती हैं और जटिल समूह का निर्माण करती हैं तो हमें और दूसरे जीव प्राप्त होते हैं जैसे कि कीड़े मकोड़े, सरीसृप, मछली, स्तनधारी और मनुष्य।
क्या हृदय में Atma का वास है?
विकास के क्रम में हर पड़ाव पर जीवों में कुछ नये गुणों की वृद्धि हुई और जब विकास क्रम मानव तक पहुंचा तो जो गुण विकसित हुआ वह था "बोध" (Consciousness)। बहुत पहले, पूरे विश्व में सभी मानव जातियों में यह विश्वास था कि Atma हृदय के अंदर होती है। उदाहरण के लिये भारत में भी महानारायण उपनिषद और चरक सहिंता में यह बात कही गयी है।
Aatma ka bhramjaal kya hai? इसे समझने के लिए सन 1964 में James D. Hardy ने अपने एक रोगी के हृदय के स्थान पर एक चिंपांज़ी के हृदय का प्रत्यारोपण किया था। 1967 में Christiaan Barnard ने एक रोगी के हृदय के स्थान पर दूसरे मनुष्य के हृदय का प्रत्यारोपण किया। तब इन सब वजह से हृदय में आत्मा के उपस्थित होने के विश्वास को बड़ा धक्का लगा था।
क्या मानव मस्तिष्क में आत्मा का वास है?
हर मानव के शरीर में अनुमानतः लगभग 37 लाख करोड़ कोशिकाएं होती हैं। और हर कोशिका में जीवन है और मानव इन्ही कोशिकाओं का समूह है, तो इस प्रकार आपके अंदर 37 लाख करोड़ आत्माएं वास करती हैं। मृत्यु होने पर, 24 घंटों के बाद आपकी त्वचा की कोशिकाएं मरने लगती हैं, 48 घंटों बाद हड्डियों की कोशिकाएं मरने लगती है। 3 दिन के बाद रक्त धमनी की कोशिकाएं मरती हैं।
यही कारण हैं कि Life after death के लिए अंगदान (ऑर्गन डोनेशन) संभव हुआ। अगर हम अपनी आँख दान कर दें तो आंख की कोशिकाएं वर्षों जीवित बची रहेंगी। जब ब्रेन स्ट्रोक होता हैं, तो दो से तीन मिनट के अंदर मस्तिष्क की वो कोशिकाएं मर जाती हैं, जहाँ पर रक्त प्रवाह रुक जाता है।
मृत्यु क्या है? Life after death क्या है?
इंसान मरता क्यों है? वह क्या चीज है, जिसके न रहने पर इंसान की मृत्यु हो जाती है?
अल्जाइमर [Alzheimer] रोगी की Brain Cells जब मरने लगती हैं तो पूरा Brain धीरे-धीरे मर जाता है (लेकिन Brain Stem Cell जीवित रहता है) शरीर जीवित होता है, एक वनस्पति की तरह। उस दशा में मृत्यु क्या है? क्या मनुष्य की मृत्यु उसके Brain Stem की मृत्यु होती है?
मस्तिष्क के दूसरे हिस्से शरीर की बहुत सी चीज़ों को संचालित करते हैं जैसे की वाकशक्ति, दृष्टि, सुनने की शक्ति, स्वाद, सूंघने की शक्ति, चलने की शक्ति, सोचने की शक्ति, बुद्धिमत्ता, मनोभाव आदि। मस्तिष्क का सबसे नीचे का हिस्सा जिसे ब्रेन स्टेम कहते हैं, वह बहुत ही आधारभूत क्रियाएं सम्पादित करता है, जैसे की हृदय गति, श्वास की प्रक्रिया, रक्तचाप आदि। जब इंसान की सांसे रुक जाती है तो हृदय धड़कना बंद कर देगा, रक्त प्रवाह बंद हो जाएगा, एक-एक कर के सारे ऑर्गन काम करना बंद कर देंगे।
सांस का रुकना या हृदय गति का रुकना मृत्यु का कारण हो सकता हैं, लेकिन यह मृत्यु नहीं है, इस अवस्था से बाहर निकला जा सकता है। परंतु ब्रेन स्टेम काम करना बंद कर दे तो फिर उसे वापस क्रियान्वित नहीं किया जा सकता। अगर ब्रेन स्टेम मर जाता है तो फिर दूसरे ऑर्गन जीवित भी हैं तो भी मनुष्य मृत ही है, ज़्यादा से ज़्यादा हम जीवित ऑर्गन का दान किसी और जीवित शरीर को कर सकते हैं। अल्जाइमर रोग के आखिरी पड़ाव में ब्रेन स्टेम को छोड़कर सभी मस्तिष्क कोशिकाएं मर जाती हैं।
क्या 'मैं' का बोध ही आत्मा है?
हमारे भाव, विचार और बोध मस्तिष्क के इस दूसरे हिस्से की वजह से होते हैं। ब्रेन स्टेम का इसमें कोई कार्य नहीं। तो फिर हमारा आत्म बोध यानि "मैं" की भावना सेरिबैलम (Cerebrum or Cerebellum) की वजह से हैं न की ब्रेन स्टेम की वजह से। हम Life after death- Atma के बोध के बिना भी जीवित वस्तु की तरह रह सकते हैं, जैसे कि वनस्पति या अल्जाइमर रोगी।
अगर हम किसी रोग या दुर्घटना में नहीं मरते तब भी वृद्ध अवस्था में मृत्यु हो जाती है, क्यों? 1962 में लियोनार्ड हेफलिक (Leonard Hayflick) ने एक खोज की थी, कि मानव शरीर की कोशिकाएं अधिकतम 50 गुना विभाजित हो सकती हैं, जिसे हेफलिक सीमा (Hayflick Limit) कहते हैं।
हमारे बचपन में कोशिका विभाजन की दर काफी ऊँची होती है, लेकिन समय के साथ यह दर धीरे होती जाती है। कोशिका का विभाजन कोशिका के नाभिक (Nucleus) में पाए जाने वाले डीएनए द्वारा होता है और DNA के सिरे पर टेलोमेर (Telomere) होता है जो हेफलिक सीमा निर्धारित करता है।
कोशिका विभाजन नियंत्रण क्या है?
टेलोमेर 50 बार से अधिक विभाजित नही हो पाता। इसकी खोज 1993 में बारबारा मैक्लिंटोक (Barbara McClintock) ने की, जिसके लिये उन्हें नोबल पुरस्कार मिला था। टेलोमेर दरअसल अनियंत्रित कोशिका विभाजन को रोकता है, दूसरे शब्दों में कहें तो यह कैंसर से बचाता है लेकिन इस नियंत्रण की प्रक्रिया में जब हम वृद्धावस्था में पहुँचते हैं तब तक टेलोमेर कोशिका विभाजन नियंत्रण की सीमा पूरी कर चुका होता है, उसके बाद कोशिका विभाजन सिर्फ कैंसर को जन्म देता है।
जिसका मतलब है कि अगर हम किसी और कारण से नहीं मरे तो वृद्धावस्था में कैंसर ही मृत्यु की वजह बन जाएगा। बचने का कोई रास्ता नहीं, मृत्यु निश्चित है। लेकिन सभी जीवों की मृत्यु ही होगी ऐसा भी ज़रूरी नहीं, जैसे कि Virus पैदा होने के बाद कभी मरता नहीं, बस कुछ परिस्थितियों में जैसे अधिक तापमान या किसी रसायन से मारा जा सकता है। वैसे ही 'जेली फिश’ जो करोड़ो साल पहले Evolution के क्रम में बनी थी, वह कभी नहीं मरती। बस यही है जीवन, मृत्यु, चेतना, ऊर्जा, आत्मा... अब इसे जैसे चाहे समझ लीजिये।
मरने के बाद क्या होता है?
मृत्यु के पार क्या है? यह सवाल अपनी जगह हमेशा से बरकरार है, आगे भी रहेगा या नहीं, किसी को नहीं पता। Charvaka Philosophy और Buddhism, आत्मा के Concept of Rebirth को पूरी तरह से नकारते हैं। उनके अनुसार जो जीवन है, बस यही है, यहां ही है और इतना ही है!
जब कोई Aatma ही नहीं होती तो किसी Life after death या Punar Janam का सवाल ही नहीं पैदा होता। बस आत्मा का सच यही तक है!
हमें आशा है कि आपको आत्मा क्या सच में होती है? प्रश्न का उत्तर यहां भली-भांति मिल गया होगा। अगर इस लेख के माध्यम से दुनिया में फैलाये गए आत्मा के भ्रमजाल को समझ पाये हों तो हमें खुशी होगी। कृपया कमेन्ट बॉक्स में अपनी राय जरूर लिखें !
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