द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। [ Islam Holy Book] आज की चर्चा में हम जानेंगे कि क्या आसमानी किताब अल्लाह ने भेजी थी? अगर आपके न...
द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। [Islam Holy Book] आज की चर्चा में हम जानेंगे कि क्या आसमानी किताब अल्लाह ने भेजी थी?
अगर आपके नज़रिये से ही यह मान लिया जाए तो Kalam-E-Ilahi की तरह Jabur, Taurat (Torah) और Injeel वो Islam Holy book है, जिसकी गवाही खुद Quran देता है।
यहां Technical नज़रिये को अलग रख कर देखें, तो मान्यताओं के हिसाब से पहली Islam Holy book जो खुदा ने करीब 3800 साल पहले भेजी वह सहूफे इब्राहीमी थी, जो अब विलुप्त हो चुकी है। फिर करीब 3000 साल पहले जबूर, 2500 साल पहले तौरेत, 2000 साल पहले इंजील और 1400 साल पहले Quran दी।
इंजील से पहले के ग्रंथों को ओल्ड टेस्टामेंट या तनख के रूप में बांधा गया जिसमें 39 किताबें थीं और बाद के कलेक्शन को न्यू टेस्टामेंट के रूप में बांधा गया जिसमें 27 किताबें थीं, इसी तरह Quran भी 30 पारों का संकलन है।
Holy Book की बातें एक दूसरे को काटती क्यों हैं?
कहने को यह सभी Islam Holy book एक ही ख़ुदा ने दी हैं लेकिन एक तरफ जहां इनमें कई समानतायें हैं, वहीं कई जगहों पर इनमें लिखी कई ऐसी बातें भी हैं जो एक दूसरे से ज़ुदा हैं, एक दूसरे को काटती हैं। ये एक दूसरे की कार्बन कॉपी हर्गिज नहीं हैं।
पिछली Holy books के कई किस्से तो क़ुरान के फॉलोवर्स खड़े पैर खारिज कर देते हैं। पीढ़ियों से चले आ रहे इस तर्क के साथ कि पिछली Holy books में बदलाव कर दिये गये। उनके अनुयायियों ने उनमें जबरदस्त मिलावट कर दी, इसलिये उनका भरोसा नहीं किया जा सकता।
अब अगर कोई यह कहे कि ऐसी छेड़छाड़ क़ुरान के साथ क्यों नहीं हो सकती...? आखिर Quran भी तो नबी के सामने जिल्दबंद नहीं की गयी थी कि वे उसकी प्रमाणिकता की गवाही दे पाते।
उस दौर में या तो आयतें जुबानी याद करते थे, या फिर पेड़ों की छाल पर, चमड़े आदि पर लिख लेते थे, हालाँकि तब से सैकड़ों साल पहले सहूफे इब्राहीमी, जबूर, तौरात किस पे लिखी गयी होंगी, यह शोध का विषय है।
बहरहाल तीसरे खलीफ़ा हजरत उस्मान के दौर में जब इसे संकलित किया गया तब तक इसमें छेड़छाड़ की, मिलावट की संभावना तो थी ही... तब कोई भी मुस्लिम यही दोहरायेगा कि ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि क़ुरान की हिफाजत की गारंटी तो खुद अल्लाह ने ली है... और तब से यह सिलसिला हिफ्ज के रूप में सीना ब सीना चलता चला भी आ रहा है।
ख़ुदा ने बाकी की हिफाज़त की गारंटी क्यों नहीं लिया?
खैर, अब अगर मैं आपसे यह पूछूं? कि ख़ुदा क़यामत तक Quran की हिफाज़त की गारंटी ले सकता है, तो उसने ऐसा ही इंतजाम पहले की Holy Books के साथ क्यों नहीं किया? कलाम तो वह भी खुदा के ही थे न... और जब भेजने वाला एक है तो पैगाम लाने वाले पैगम्बर भले अलग-अलग हों, मगर पैगाम तो एक ही होना चाहिये था न... कुछ पैगम्बरों की कहानियाँ हटा कर, जो आगे-पीछे जुड़ीं... बाकी स्क्रिप्ट तो एक ही होनी चाहिये थी न?
वह जो भूत-भविष्य की बातों का ज्ञाता है, जिसे छुपे हुए सभी राज मालूम हैं... क्या उसे न पता रहा होगा कि उसकी अलग-अलग किताबें अलग-अलग मजहब पैदा करेंगी और उनके नाम पर अलग-अलग फॉलोवर्स Jews, Christians, Muslim के रूप में एक दूसरे से नफ़रत भी करेंगे... एक दूसरे के खिलाफ़ साजिश भी करेंगे... एक दूसरे का कत्लेआम भी करेंगे... पता तो होगा न उसे, और ताज्जुब है कि फिर भी उसने ऐसा होने दिया।
ख़ुदा ने ऐसी गलती क्यों दोहराई?
इंसान भी एक गलती/ठोकर/धोखा खाने के बाद संभल जाता है और फिर वही गलती नहीं करता लेकिन खुदा ने जबूर में मिलावट होने के बाद भी Tauraat की हिफाजत का इंतजाम नहीं किया, फिर दोनों किताबों में चूक होने के बाद भी फिर से बाईबिल में वही धोखा खाया और अपनी Holy book की हिफाजत का जो जिम्मा पहली बार में ही लेना चाहिये था, वह मुसलसल चार नाकामियों के बाद कुरान पर जा के लिया, मने ठोकर खा कर संभलने के मामले में इंसान से भी गया गुजरा है।
Think about Islam holy book !
लेकिन दिल के बजाय दिमाग से सोचिये... ऐसा क्यों है?
हाँ, आप दो तरह के तर्क रख सकते हैं पहला यह कि उसे पता नहीं था या अंदाजा नहीं था कि उसके ही बनाये इंसान ऐसा खेल-खेल सकते हैं लेकिन यह तर्क खुदा के भूत-भविष्य का ज्ञाता होने, आलिमुल गैब होने पर सवाल खड़े कर देगा।
आप दूसरा तर्क यह दे सकते हैं कि खुदा खुद ऐसा चाहता था यानि वह ये चाहता था कि दाऊद, मूसा और ईसा के मानने वाले पथभ्रष्ट हो जायें और जहन्नुम के मुस्तहक बनें लेकिन यह तर्क उसके अपने ही बनाये लोगों से भेदभाव करने का नया इल्जाम खड़ा कर देगा, जो उसके 'इंसाफवाला' होने पर सवालिया निशान लगा देगा।
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