द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा राष्ट्रवाद और देशप्रेम में क्या अंतर है? इसे समझने के लिए है। देश का अर्थ है वह स्थान ...
द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा राष्ट्रवाद और देशप्रेम में क्या अंतर है? इसे समझने के लिए है।
देश का अर्थ है वह स्थान जहां आप रहते हैं। और देशप्रेम [Patriotism] का अर्थ है, अपने आसपास की जगहों का ख्याल रखना, अपने पर्यावरण की सुरक्षा करना, अपने आसपास के लोगों से प्रेम करना, उनकी खुशी में शामिल होना, उनके मानवाधिकार का ख्याल करना, अपने निवास के आसपास के स्थान को प्रेम करना ही असली देशभक्ति है। देशप्रेम आपको वास्तविक स्थानों और व्यक्तियों से प्रेम करना सिखाता है।
यानि देश भूमि का एक टुकड़ा मात्र है। राष्ट्र समान संस्कृति साझा करने वालों का समूह।
प्रेम दोनों से किया जा सकता है। गर्व करने के लिए यह ज्ञातव्य होना चाहिए कि गर्व विषय से नहीं विशेषताओं से जन्म लेता है। अर्थात हिन्दू होना गर्व करने के लिए पर्याप्त नहीं है। गर्व करने के लिए तार्किक, जिज्ञासु, मानवतावादी हिन्दू होना बेहद आवश्यक है।
देशप्रेम और राष्ट्रवाद परस्पर विरोधी क्यों है?
राष्ट्र एक अमूर्त धारणा व राजनैतिक इकाई है। राष्ट्र को आप देख नहीं सकते। इसे आप सिर्फ कुछ प्रतीकों के माध्यम से पहचाना जाता हैं।
राष्ट्रवाद एक आधुनिक अवधारणा है जो पूरे विश्व में आधुनिक चेतना आने के बाद सामने आई। राष्ट्र एक तरह से काल्पनिक समुदाय होता है जो अपने ही समूह के सदस्यों के सामूहिक विश्वास, इतिहास, महत्वकांक्षाओं, कल्पना एवं राजनीतिक समझ जैसी मान्यताओं पर आधारित होता है। इन मान्यताओं को लोग उस समूचे समुदाय के लिए गढ़ते हैं ताकि वे अपनी वही पहचान कायम रख सकें।
राष्ट्रवाद स्थापित करने वाले समुदाय का यह प्रयास होता है कि वह अन्य समुदायों पर अपनी स्मृतियों, कथा कहानियों, ऐतिहासिक साक्ष्यों, राजनैतिक आदि से प्रभावित कर उन्हें अपने में समाहित कर सकें। भिन्नता या अपने से इतर विचार रखने वालों को नियंत्रित करने के लिये राष्ट्रवाद एक औजार की तरह प्रयोग में लाया जाता है।
राष्ट्र के प्रतीक क्या हैं?
- एक ध्वज
- एक सरकार
- एक राष्ट्रगान
- एक नक्शा
- एक सेना
- एक धर्म
- एक भाषा
- एक इतिहास
इनके द्वारा ही आप किसी राष्ट्र को पहचान पाते हैं, ये प्रतीक ही राष्ट्र के प्रतिनिधि बन जाते हैं। याद रखिये इन प्रतीकों का आपके आसपास के लोगों की खुशी से कोई लेना-देना नहीं होता। बल्कि कभी-कभी राष्ट्र के नाम पर इन प्रतीकों को मनुष्य से भी महान बना दिया जाता है। इसलिए मनुष्यों को समझाया जाता है कि जाओ झंडे के लिए मर जाओ, नक़्शे के लिए मर जाओ, National Anthem के लिए मर जाओ, किसी मनुष्य का इन प्रतीकों के लिए मर जाना महान बात बना दी गई है।
अक्सर राष्ट्र के इन प्रतीकों की आड़ में, आर्थिक लूट करने वाले अमीर जनता को भड़का कर और अपना उल्लू सीधा करते हैं। आप बारीकी से देखेंगे कि खाया-पिया पेट भरा हुआ अमीर शहरी राष्ट्रवाद के सबसे ज़्यादा नारे लगाता है। जबकि गरीब अपनी बदहाली और ज़ुल्मों के विरुद्ध आवाज़ उठाना चाहता है।
अक्सर देखा यह गया है कि गरीब के न्याय मांगने से अमीर लोगों को बड़ा डर लगता है। क्योंकि अमीर तो चल रहे अन्याय के कारण ही मज़े में होते हैं। इसलिए गरीब जब भी न्याय के लिए आवाज़ उठाता है, उसी समय अमीर तबका राष्ट्रवाद का ज़्यादा शोर मचाने लगता है। उसके इस शोर से न्याय की मांग को दबा दिया जाता है।
आज़ादी के बाद संविधान बराबरी ला सकता था, लेकिन संघ और हिंदू महासभा नें राष्ट्रवाद का खेल शुरू कर दिया, आज भी राष्ट्रवाद का शोर इसीलिये मचाया जा रहा है। ताकि गरीब आदिवासियों दलितों और अल्पसंख्यकों की न्याय और बराबरी की मांग को दबाया जा सके।
राष्ट्रवाद एंव देशप्रेम में क्या अंतर है? इसे समझिए, राष्ट्रवाद के खतरे पहचानिए! देश के पर्यावरण और देश के लोगों से प्यार करिए, देशप्रेमी बनिये, राष्ट्रवादी नहीं!
क्या राष्ट्रवाद खराब है?
नहीं, राष्ट्रवाद तभी खराब होता है, जब यह अपने साथ विश्वगुरु होने का फर्जी श्रेष्ठता बोध, भ्रामक प्रचार से पैदा हुई फर्जी बातों में गर्व बोध ढूँढे व अन्य मतों के प्रति घृणा को जन्म दे।
अमेरिकन भी राष्ट्रवादी हैं, किन्तु उनका राष्ट्रवाद मानव मूल्यों, फ्रीडम ऑफ स्पीच, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देने वाले राष्ट्र के प्रति है, जिसे उन्होंने साझी संस्कृति से बनाया है। इतिहास में गर्व करने के लिए उनके पास कुछ है ही नहीं। इसलिए उनका राष्ट्रवाद वर्तमान में जीना सिखाता है।
बताइये, उनका राष्ट्रवाद उन्हें किसी से कम काबिल बनाता है क्या?
आप राष्ट्रवादी हैं - हैं या नहीं - यह आप सबकी अपनी परिभाषाओं पर निर्भर करता है।
कोई भी राष्ट्रवादी हो सकता है, वो अच्छा राष्ट्रवादी है या बुरा, यह उसके विचार निर्धारित करते हैं। अपनी खुद की कहानी में कोई खलनायक नहीं होता।
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