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क्या वैज्ञानिक सोच और जीवन शैली आपका भ्रम है?

[वैज्ञानिक सोच और जीवन शैली] द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम जानेंगे कि क्या वैज्ञानिक सोच और जीवन शैली एक भ्रम...

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[वैज्ञानिक सोच और जीवन शैली] द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम जानेंगे कि क्या वैज्ञानिक सोच और जीवन शैली एक भ्रम मात्र है?

इस समय पृथ्वी जिस हाल में है, क्या इस की वजह विज्ञान है? कुछ लोगों का मानना है कि आज जो हवा, जल प्रदूषित हो रहा है, वो सब कुछ विज्ञान की देन है।

इस बारे में थोड़ा विस्तार से समझते हैं।

कुछ लोगों का कहना हैं कि आज जितने भी कल-कारखाने, जितनी भी प्रदूषण की चीज़ें हैं सब कुछ विज्ञान की देन हैं। आज विकास का जितना भी आडंबर रचा जा रहा है वो सब कुछ “विज्ञान” जनित, प्रकृति विरुद्ध कार्य है।

आगे उनका यह भी कहना है कि विज्ञान जनित किसी भी चीज़ का प्रकृति के साथ कोई “तालमेल” नहीं है। इन विकास कार्यों का प्रकृति के साथ कोई Synergy नहीं है।

बताते हैं, पृथ्वी के कुछ इलाकों में शहरों से दूर आज भी कुछ ऐसे लोग रहते है, जो पेड़-पत्थर पूजते हैं। जैसे सुदूर तिब्बत में बैठे लामा से तिब्बत की प्रकृति को कोई ख़तरा नहीं है। जबकि आधुनिक दुनिया के हिसाब से वो अन्धविश्वास में  डूबे, निरे बेवकूफ़ लोग हैं।

फिर भी ऐसे लोगों को वैसा ही रहने दीजिये। वो जैसे भी हैं कम से कम इस प्रकृति को किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाते है। वहां जा कर अपनी विकास की धारा मत बहाइये! उन लोगों को अपने जैसा शिक्षित और वैज्ञानिक सोच वाला बनाने की गलती मत करिए।

भविष्य में पृथ्वी पर ऐसी ही कुछ चुनिंदा जगहें बचेंगी जहां जीवन संभव होगा, क्योंकि अंत में यही नस्लें बाकी बचेंगी। “विज्ञान” आज नहीं तो कल, सारी नस्लों को लील लेगा।

वैज्ञानिक सोच वालों की ये भीड़ जो बिना कार और बाइक के इंसान को आधुनिक और विकसित नहीं समझती है, वो पृथ्वी को नष्ट करने वाली भीड़ है। वैज्ञानिक सोच के साथ जितना अधिक विकास करेंगे, पृथ्वी उतनी ही अधिक नष्ट होती जाएगी। इंसानों के भविष्य में जीने की संभावनाएं उतनी ही क्षीण होती जायेंगी।

विज्ञान द्वारा आधुनिकता से लैस युद्ध कितना भयावह होता है, ये Hiroshima वालों से बेहतर भला कौन बता सकता है। इसलिए एक तरफ़ा मत चलिए.. “वैज्ञानिक सोच” और “वैज्ञानिक जीवनशैली” को Promote करने से पहले कम से कम 10 बार सोचिये।

दरअसल, हम सब अपने जीवन भर दुनिया के रचे तमाम भ्रम में फंसे रहते हैं, पूरे जीवन ऐसी तमाम विचारधाराओं से मुक्त नहीं हो पाते। हम इसे भ्रमजाल कहते हैं क्योंकि इससे निकल पाना आपके लिए आसान नहीं होता।

जंगलों का अतिक्रमण और जानवरों के बसेरे उजाड़ने में मुख्य भूमिका "खेती" की होती है.. खेती ने दुनिया के सारे जंगल से जानवरों को बेघर किया.. मगर एक ऐसा ट्रेंड चलाया है क्रांतिकारियों ने जिसमें वो किसी भी कंपनी या व्यापारी द्वारा बनाए गए किसी भी होटल, रिजॉर्ट या फॉर्म हाउस को जंगल के उजड़ने का मुख्य कारण बता देते हैं, जबकि ये सौ प्रतिशत गलत बात है

जहां कहीं भी, चाहे वो जंगल हों या पहाड़ हों, अगर वहां कोई अच्छा रिजॉर्ट या होटल बन गया, तो वहां का वो क्षेत्र वन्य जीवों के लिए पूरी तरह से सुरक्षित क्षेत्र बन जाता है.. क्योंकि रिजॉर्ट या होटल अगर एक बार बन गया तो वहां उस क्षेत्र को पूरी तरह से हरियाली में बदल दिया जाता है.. जहां बड़े बड़े फलदार पेड़ों से लेकर तमाम तरह के फूल और अन्य पेड़ उगाए जाते हैं जिनका प्रकृति और जंगल के इकोसिस्टम को बनाए रखने में बहुत बड़ा योगदान होता है.. जितना पानी कोई रिजॉर्ट पूरे दस साल में खर्च करेगा उतना किसान एक साल में खर्च कर देता है धान और गेहूं की सिंचाई के नाम पर.. किसान अपने खेतों के आसपास कोई भी ऐसे पेड़ रहने ही नहीं देते हैं जिन पर पशु पक्षी या जानवरों का कोई आसरा हो सके

खेती प्रकृति के लिए अभिशाप है.. सारी दुनिया के जितने जंगल खेती ने उजड़े हैं उतने न तो किसी फैक्ट्री ने उजड़े न किसी रिहाइश इलाके ने.. इंसानों ने जब से खेती करना शुरू किया, इस प्रकृति को तबाह करके रख दिया
वीडियो देखिए.. ये आज शाम का है.. हमारी रिजॉर्ट की ज़मीन के बगल में एक खेत है.. ये खेत भी पूरी तरह से जंगल से सटा हुआ है.. अभी इसमें धान कट रहा है.. उसके बाद यहां गेहूं वो दिया जाएगा और फिर उसमें लाखों लीटर पानी, दवा, पेस्टीसाइड और न जाने क्या क्या डाला जाएगा.. जबकि जिस ज़मीन पर हमारा प्रोजेक्ट है, प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद यहां कभी ऐसी मशीनें नहीं चलेंगी, फलदार पेड़ और फूलों से भरा होगा ये ज़मीन का टुकड़ा जहां पक्षी से लेकर मधुमक्खी तक का ख्याल रखा जाएगा.. 80% हरियाली होगी यहां और सिर्फ़ बीस प्रतिशत में कॉटेज बने होंगे

शहरों में बैठकर अपनी बुद्धि को अपडेट कीजिए.. होटल और रिजॉर्ट देखकर प्रकृति के संरक्षण पर मत रोने लगा कीजिए.. खेती देखकर प्रकृति के संरक्षण का रोना शुरू कीजिए.. खेती प्रकृति की असल दुश्मन है और दुनिया में अगर इस समय के कुल 10% खेत ही बचें तब भी इंसान का पेट भर जाएगा.. अभी इंसानों ने हवस में इतने ज़्यादा खेत बना रखें है जिस से तीन पृथ्वी के बराबर इंसानों को खिलाया जा सकता है.. खेत कम करने की वकालत कीजिए, जानवरों और प्रकृति का संरक्षण अपने आप हो जाएगा

निष्कर्ष

हमारे विचार से इसमें विज्ञान का कसूर मानना पूर्णतः उचित नहीं। विज्ञान एक टूल की तरह है, जिसका अच्छा-बुरा दोनों तरह से उपयोग किया जा सकता है। विज्ञान ने कभी यह नहीं सिखाया की प्रकृति का दोहन कर लो, विज्ञान ने तो संवर्धन के गुण भी सिखाए हैं।

दरअसल ये वैज्ञानिक जीवन शैली नहीं है, इसे अविचारी जीवन शैली कहना ज्यादा ठीक रहेगा। दोनों बिल्कुल अलग-अलग बात है। विज्ञान का काम सत्य-असत्य जानना या कोई सिद्धांत कैसे काम कर रहा है, ये समझना-समझाना है।

कचरा नदी में डाल देना, पेड़-पौधे नष्ट कर देना, विज्ञान ने ऐसा कब कहा है? यह तो मानव के अविचार की वजह से है। असल में विज्ञान द्वारा अर्जित शक्ति या जानकारी से ज्यादा जिम्मेदारी बढ़ती है, किन्तु लोग सिर्फ सुख लेना चाहते हैं, जिम्मेदारी निभाना नहीं।

संक्षिप्त में इसे ऐसे समझें -

"आज के स्वार्थी मानव का सारा अहंकार उसकी बनाई जीवन शैली की वजह से है, जो उसे विज्ञान द्वारा ईजाद वस्तुओं से हासिल होता है"!

दोष मानव के स्वार्थी व अहंकारी मनोदशा का है!

आपका इस बारे में क्या विचार है, हमें कमेन्ट बॉक्स में जरुर बताएँ !

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