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धर्म गुरु की आवश्यकता क्यों है?

The Bhramjaal में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में एक सवाल है कि आपको धर्म गुरु की आवश्यकता क्यों है? कैसे आप धर्मगुरुओं के भ्रमज...

Dharm-Guru

The Bhramjaal में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में एक सवाल है कि आपको धर्म गुरु की आवश्यकता क्यों है? कैसे आप धर्मगुरुओं के भ्रमजाल में फंस जाते हैं?

Why dharm guru needed?

मेरी रुचि कभी किसी किस्म के Dharm Guru में कभी नहीं रही। और आपको भी यही सलाह दूंगा कि Dharm Guru को खोजने और उनमें उलझने से कोई लाभ नहीं होने वाला। हां, उल्टा नुकसान जरूर उठाना पड़ सकता है!

Dharm Guru के बारे में मेरी राय

मैं सिर्फ बुद्ध पुरुषों, रहस्यवादियों और विज्ञान की खोजों में दिलचस्पी रखता हूं, और हमेशा से मेरा मानना रहा है कि “मानो नहीं जानो..!”, जो भी स्वयं की खोज में उतरने और उसको विकसित करने में सहयोगी हो, वही आपका गुरु है, अब वो पैंट-शर्ट पहनता हो या जींस-कुर्ता। मेरे लिए इस बात का कोई मतलब नहीं है। और बाकी पहनावे के साथ शुगर कोटेड बातें करने वाले जो आपको Dharm Guru लगते हैं मेरी नज़र में वो सब महज़ दुकानदार हैं, जो अपना कुछ ना कुछ बेचने के लिए तमाम तरह के प्रलोभन देकर आपको फँसाते हैं।

Dharm Guru बनने के पीछे का राज क्या है?

सभी तरह के तथाकथित Dharm Guru जिसमें कि मौलवी, पादरी, पंडित या अन्य इसमें सभी तरह के Dharm Guru आते हैं ये सभी अपनी ख़ुद की मनगढ़ंत मान्यताओं, तौर-तरीकों और ऊलजलूल बातों को लोगों पर थोपने वाले, और उनका शोषण करने वाले लोग हैं, ये बिना अनुभव और वास्तविक ज्ञान के पाखंडी लोग होते हैं, दरअसल इन्हें तो वास्तविक धर्म का मर्म और सत्य ज्ञात ही नहीं होता, और ना इनकी इसमें कोई रुचि होती है। इन्हें तो बस अपनी दुकान चलाने के लिए अंधभक्तों और अंध-विश्वासियों की भीड़ चाहिए होती है। जो सिर्फ उनका गुणगान करे, और इनकी हां में हां मिलाए व उनके कारोबार को चलाने में मददगार साबित हो, और इनकी ख़ुद की स्वार्थ पूर्ति और महिमा मंडन में सहयोगी हो ऐसे तथाकथित धर्मगुरूओं के अपने-अपने एजेंडा और स्वार्थ होते हैं, इनका सत्य और धर्म से कोई लेना-देना नहीं होता।

इन्हें Dharm Guru कहना अपराध के बराबर है!

भारत में लगभग 276 प्रजातियों के सांप पाए जाते है, जिनमें से 55 प्रजाति के सांपो में आंशिक जहर होता है, और मात्र 6 प्रजाति के सांप ऐसे है, जो किसी इंसान की जान ले सकते हैं। यानि केवल 2% सांप ही सही मायने में जहरीले होते है।

लेकिन, भारत में विभिन्न धर्म और संप्रदायो के लगभग 130 प्रजाति के धर्म गुरु बसते है, और वो सब  के सब, इंसानों के लिए सांपो से भी ज्यादा जहरीले हैं।

इन्हें Dharm Guru कहना ही अपराध के बराबर है, ये सिर्फ सांप्रदायिक नेता या किताबी पंडित, मौलवी से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं। इनकी सारी विद्वता का आधार तथाकथित वह धर्मग्रंथ होते हैं, जिन्हें अब तक कूड़े के ढेर में फेंक देना चाहिए था लेकिन हमारे अंध विश्वासी समाज ने उसे बाकायदा संभाल कर रखा हुआ है।

ये तथाकथित दुकानदार उसमें लिखी बातों में अपने मनमाने अर्थ फिट कर लोगों को दिग्भ्रमित कर उनकी मूर्खता, भय, लोभ और अंधविश्वासों के कारण उनका शोषण करते हैं, इस खूबसूरत दुनिया में ज़्यादातर झगड़ों के निर्माता, प्रचारक और प्रसारक यही लोग हैं। दुष्ट व ख़तरनाक राजनीतिज्ञ इनके सबसे घनिष्ठ मित्र होते हैं, आज इन दोनों की जुगलबंदी से ही पूरा विश्व पीड़ित है।

यदपि ऐसा अतीत से ही होता आया है, और वर्तमान में भी ऐसा ही हो रहा है, और शायद आगे भी ऐसा ही होता रहे। क्योंकि अंधभक्त सांप्रदायिक नेताओं के द्वारा रचे हुए जाल एवं अपनी मूर्खता व अंधी दृष्टि की वजह से सदैव इस फैलाए गए कपट जाल में फंसकर अपना और दूसरों का विनाश करते रहते है और सच्चे और वास्तविक लोगों को सूली, अपमान और ज़हर दे दिया जाता है।

भारत में कौन है वास्तविक धर्मगुरु?

मैं तो कहता हूँ कि आज कोई भी वास्तविक Dharm Guru नहीं है क्योंकि वास्तविक गुरु वो होता है जो आपको, आपके सत्य की ओर उन्मुख करने में सहयोगी और मार्गदर्शक हो, यही धर्म और धार्मिक होने का वास्तविक अर्थ है। जो अपने होने और इस जगत के सत्य को जान चुके हैं ऐसे सच्चे गुरु मिलना ही दुर्लभ है। अब इतना सा सत्य तो सभी समझते है कि “एक आँख वाला ही अंधों को रास्ता दिखा सकता है”। फिर भी ये देखकर आश्चर्य होता है कि-

हमारी दुनिया में अंधे ही अंधों को रास्ता दिखाने का प्रयत्न कर रहे हैं और मज़े की बात यह है कि यह हो रहा है बड़े आत्मविश्वास और आडम्बरों के साथ!

गुरु की पहचान क्या है?

अब चूंकि वास्तविक गुरु तो कोई दावा नहीं करता वो तो सिर्फ आपकी सम्भावना को सच होने में सहयोगी होता है, वो सिर्फ इशारे देता है, वास्तविक विधियाँ बताता हैं ताकि आप अपने आत्म-स्वरुप को जान सकें, वो कोई भी बंधी हुई धारणाएं आपको नहीं देता, वो आपको स्वयं अनुभव में उतारने के लिए सक्षम बनने में सहयोगी होता है। वास्तविक गुरु आपकी बैसाखी नहीं बनता वो तो ख़ुद आपको आत्मनिर्भर बनाता है, वो आपको स्वयं जानने और खोजने और अनुभव को उपलब्ध होने की दिशा में सहयोगी होता है, वो एक उत्प्रेरक की तरह होता है जो आपकी आंतरिक सम्भावना को प्रकट कराने में उचित सहयोग प्रदान करता है। वो एक मार्गदर्शक या दिशा सूचक की तरह होता है ताकि आप सही मार्ग की ओर गति कर सकें और आंतरिक विकास को उपलब्ध हो सकें, वो आपको कोई धारणा और ज्ञान नहीं देता, वो आपको शून्य और खाली होने में मददगार होता है, ताकि आपका सत्य आपके सामने प्रकट हो सके, यही आत्मोपलब्धि धर्म है, यही वास्तविकता है और ऐसे व्यक्ति ही वास्तविक गुरु होते हैं।

आज एक बात और समझ लीजिये कि-

धर्म का अर्थ स्वयं के होने का सत्य को जानना और खोजना होता है,
कुछ भी... पहले जो माना गया, उसे आज मानना नहीं!

कपोल-कल्पित मान्यताओं को ‘धर्म’ न समझे!

बाकी ये संगठित धार्मिक गिरोह, जो धर्म का ‘ध’ भी नहीं जानते इस सम्बन्ध में सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। क्योंकि हमारे समाज में मूढ़, अंधे और सिरफिरे पागलों का बहुत बड़ा समूह हैं, जो इनकी कपोल-कल्पित मान्यताओं को ‘धर्म’ समझने के लिए व अपनाने के लिए तैयार बैठा रहता है, वो इसके लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहते हैं। ये अपनी मूढ़-असत्य और अमानवीय मान्यताओं के सम्बन्ध में कोई तर्क पूर्ण बात सुनने-समझने को तैयार ही नहीं होते, ये लोग कभी भी वास्तविक ‘धर्म’ को उपलब्ध ही नहीं हो सकते। ये जो मानने पर जोर देते हैं, अल्प ज्ञानी उसे बिना किसी खोज़ या परख के उसे स्वीकार कर लेते हैं, और दूसरों के साथ इस मूर्खता को स्वीकार कर लेने के लिए अमानवीय तरीके इस्तेमाल करते हैं, दरअसल यही तो इस धरती के सबसे बीमार और ख़तरनाक प्रजाति हैं।

दरअसल जिन्हें आप गुरु समझते हैं वो सभी सिर्फ़ सांप्रदायिक प्रचारक है, उनमें से कोई भी धर्म से संबंधित नहीं है ना ही गुरु कहलाने लायक। इसमें से कुछ तो कथा वाचक और शास्त्री है, या फिर मुल्ले, पादरी और मौलवी हैं, इनकी समझ और पहुंच किताबों के लिखे से ज्यादा कुछ भी नहीं है, धर्म यानी आंतरिक जगत के सम्बंध में इनका कोई भी व्यक्तिगत अनुभव और उपलब्धि कहीं भी देखने को नहीं मिलती। मेरी नजर में इससे ज्यादा ना इनका कोई मूल्य है ना महत्व, ‘धर्म’ अंदरूनी बात है इसका बाहयोपचरों, पाखंडों और आडंबरों, रूढ़ मृत मान्यताओं और मुर्दा सिद्धांतों से कोई भी लेना-देना ही नहीं होता।

गुरु हैं या कोई सांप्रदायिक नेता?

जिन्हें भी आप सच्चा गुरु मानते हैं, वो या तो सांप्रदायिक नेता हैं या फिर किसी न किसी पंथ को मानने वाले लोग, और ये सभी अपने-अपने धर्म का अपने-अपने ढंग से प्रचार करते हैं, मैं तो कहता हूँ कि इस धरती पर वास्तविक Dharm Guru आपको बिरले ही मिलेंगे बाकी तो सब अपने सम्प्रदायों और मूढ़ मान्यताओं के प्रचारक हैं। इनका काम अपने मत या संप्रदाय का सिर्फ़ बखान करना व अपना झंडा ऊँचा करना है। बाकियों की निंदा करके हर निकृष्ट तरीके से अपने मत या संप्रदाय में धर्म परिवर्तन करवाने का पेशा करते हैं। इनमें से एक का पिछले 1400 सालों में मानने वालों की संख्या बड़े संप्रदाय में विकसित हो गयी है।

धार्मिक गुरुओं की आवश्यकता क्यों हैं?

यही पूरी दुनिया में अशांति और विग्रह के जन्मदाता हैं और सबसे बड़े आतंकवादी और मनुष्यता के शत्रु भी, इनके सभी सांप्रदायिक प्रचारक छद्म रूप से धर्म का धंधा करते हैं। इनसे आपको सावधान व इनके दूषित प्रभाव से ख़ुद को मुक्त रखना ही उत्तम है। क्योंकि इन सभी का सारा धंधा चलता है लोगों के अज्ञान और उनकी अचेतन बुद्धि, भय और लालच पर, स्वर्ग-नर्क का धंधा और परलोक की मनगढ़ंत कहानियां और प्रलोभनों पर, कोई भी चेतना वान मनुष्य इन गधों और मूर्खों की बातों को बहुत महत्व नहीं दे सकता न इनके पाखंड शोषण और मूढ़ता के व्यापार का समर्थन कर सकता है, यही मनुष्य होने का अर्थ और सार्थकता है।

धर्म गुरु और बाबाओं ने अपने करोड़ों भक्त नहीं बनाए बल्कि करोड़ों भक्तों ने धर्म गुरु और बाबा को ग़ुलाम (Slave) बनाया है। सभी बाबा अपने भक्तों के ग़ुलाम होते हैं। आज के हर धर्म के बाबाओं और गुरुओं का यही हाल है। 

भक्तों को तो ये छूट होती है कि वो बाबा के बताए रास्ते पर चलें या न चलें, लेकिन बाबाओं को ये छूट बिल्कुल नहीं होती है कि वो भक्तों के बनाए पैमाने पर चलें या न चलें। उन्हें चलना ही है, तभी भक्त उनके आगे नतमस्तक होंगे।

ये एक तरह का खेल है.. बड़े लोगों और वयस्कों का खेल.. जिसमें वयस्कों ने पहले के किसी एक संत या बाबा से किसी सच्चे संत और बाबा को पहचानने के कुछ नियम सीखे होते हैं.. जैसे सच्चा बाबा मतलब राग द्वेष से मुक्त व्यक्ति, उसके अंदर आम आदमियों वाली कोई हरकतें नहीं होंगी, मतलब वो न तो शराब पिएगा, न सिगरेट पिएगा, न क्लब जाएगा, न डांस करेगा, न दूसरी लड़कियों को देखेगा, न उसके भीतर दूसरों को देखकर वासना आएगी, न उसके भीतर पैसों और भौतिक सुखों को लेकर कोई इच्छा होगी.. इत्यादि इत्यादि।

अब एक चालक व्यक्ति जिसे बाबा बनना होता है वो इन नियमों पर खरा उतरने का अभिनय शुरू करता है.. कुछ दिन और कुछ महीना भुखमरी में रहकर वो ये अभिनय साध लेता है.. और फिर धीरे धीरे उसके भक्त बनने शुरू होते हैं.. फिर भक्त जब उसे अपने पैसे दान में दे कर अमीर बनाने लगते हैं तब उसकी इच्छाएं जागृत होना शुरू होती हैं.. फिर वो जिस सलमान खान को पहले गाली देता था अब उसके यहां से बुलावा आता है तो वो अपने आपको रोक नहीं पाता है.. उसे कोई मंत्री, प्रधानमंत्री, एम पी, एम एल ए जब उसे बुलाता है या उस से मिलने आता है तो वो भागा भागा जाता है।

अब ये बाबा चूंकि बाबा होने का अभिनय कर रहा होता है इसलिए इसे बहुत सुसंस्कृत और सामाजिक दिखना होता है.. ये अगर शादी शुदा होता है तो अपनी पत्नी से नहीं लड़ पाता है, अगर कुंवारा होता है तो शादी नहीं कर पाता है, न किसी को गाली से पाता है, न किसी से झगड़ा कर पाता है, न किसी को गुस्से में चार बातें सुना पाता है.. वो सब कुछ साधा करता है.. और इस साधने में वो कुंठित होता चला जाता है.. इसलिए जितने बुड्ढे बाबा और संत होते हैं जो जीवन भर अभिनय करते हैं वो बुढ़ापे में बहुत चिड़चिड़े और गुस्सैल हो जाते हैं.. क्योंकि भक्तों के ग़ुलाम बने बने ये पीड़ा और कुंठा से भर जाते हैं।

बाबा और संत बनने के जितने भी नियम आपके समाज में प्रचलित हैं वो "बुद्ध" पुरुष के गुण होते हैं.. बुद्ध पुरुष ने वो गुण साधे नहीं होते हैं.. वो बुद्धत्व के बाद स्वताः उत्पन्न गुण होते हैं.. बुद्ध जैसा व्यक्ति भक्तों से पूछ कर अपनी पत्नी को छोड़ता या पकड़ता नहीं है.. वो किसी डाकू से मिलने जाता है तो अपने भक्तों से बाद में माफ़ी नहीं मांगता है.. वो तवायफ से भी मिलता है तो उसे भक्तों और अपनी प्रतिष्ठा का ख्याल नहीं आता है.. जब बुद्ध के लाखों भक्त बन गए तब बुद्ध ने अपनी पत्नी को वापस बुला के अपने पास नहीं रख लिया और न ही उनके पास जाकर रहने लगे ये सोचकर कि भक्त मेरे क्या सोचेंगे

मुझे भी बड़े सारे लोग बाबा बनाने आते हैं.. कहते हैं "अरे आप इतने अश्लील पोस्ट क्यों कर रहे हैं, इतनी अश्लील बातें क्यों कर रहे हैं, इतना गुस्सा क्यों कर रहे हैं, औरतों को देवी क्यों नहीं मान रहे हैं".. ये सब जिस दिन मैं साधने लगूंगा, तुम मुझे बाबा मान लोगे.. मैने इसी फेसबुक पर एक से बढ़कर एक बहरूपिए लेखकों को बाबा बनते देखा है.. आज वो गुरु जी हैं, साधू हैं और जाने क्या क्या हैं.. उन्होंने बस फेसबुक पर अपनी लेखनी को साध रखा है.. भीतर से वो वही सब हैं जो वो हैं।

लोगों को गुरु बनाना बंद कीजिए.. ये वैसे ही होता है जैसे बचपन में आप अपने किसी बच्चे को रियलिटी शो में भेजकर उस से पैसा कमवाने लगते हैं और उसका बचपन ख़त्म कर देते हैं।

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