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Dharm Kya Hai? | धर्म क्या है?

द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम जानेंगे कि धर्म आखिर क्या है? | Dharm Kya Hai? धर्म के अधिभौतिक तत्वों की चर्च...

Dharm-Kya-Hai

द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम जानेंगे कि धर्म आखिर क्या है? | Dharm Kya Hai?

धर्म के अधिभौतिक तत्वों की चर्चा द्वारा Dharm के सामाजिक और राजनीतिक पक्ष पर पर्दा डालने का प्रयास किया जाता हैं, जो उचित नहीं लगता। यह धुंध हमें वास्तविकता से दूर ले जाती है, और अपने Dharm के प्रति आत्ममुग्धता पैदा कर देती है। इससे बाहर निकलना हम सब के लिए बेहद आवश्यक है।

धर्म आखिर क्या है?

कुछ का कहना है कि लोग धर्म को Religion समझने की भूल करते हैं। जबकि धर्म का Religion से कोई संबंध नहीं है, दोनों का अर्थ ही भिन्न है। धर्म यानी किसी क्षण विशेष, स्थान विशेष में जो सही है वह करना, बस। फिर इसी आधार पर जो सही नहीं है वह करना अधर्म हो जाता है।

इस आधार पर धर्म पूरी तरह व्यक्तिपरक और व्यवहारिक अवधारणा [Concept] है, जबकि Religion पूरी तरह समूहपरक और Theoretical यानि सैद्धांतिक अवधारणा है

सही क्या है, गलत क्या है?

यह कोई किताब नहीं बताती, बता भी नहीं सकती क्योंकि वह सीमित है, साथ ही काल सापेक्ष और स्थान सापेक्ष भी। यह बताती है आपके अंदर की आवाज़ जिसे Common Sense कहते हैं। ये आपके अस्तित्व की आवाज़ है जो किताबों जैसी स्थिर [Static] नहीं होती, बल्कि गतिशील [Dynamic] होती है, जिसे आप किताबों की आवाज़ तले दबा देते हैं।

Religion क्या है?

Religion वह है जहां हमने किसी खास दर्शन पद्धति, किसी खास किताब या ईश्वर को मान्यता दे दी और उस पर अपनी आस्था रख ली। एक लाइन खींच दी, गोला बना दिया और घोषित कर दिया कि इसके अंदर का सब सही और बाहर का सब गलत है।

सभी धर्मों को जाने बिना सही मार्ग का चुनाव नहीं किया जा सकता, हमारे लोकतंत्र में भी ऐसी व्यवस्था है जो सभी धर्मों को समझने और चयन करने का अवसर प्रदान करता है।

क्रिश्चियनिटी, इस्लाम, बौद्ध, जैन, सिख इत्यादि, सब Religion हैं, क्योंकि इनके सब के अपने गोले हैं। हिन्दू/ वैदिक/ सनातन में बस एक फर्क आ जाता है कि ये खुद कोई एक Religion नहीं है बल्कि कई छोटे-छोटे Religions का समूह हैं, यहां कई गोले हैं। इस तरह धर्म तो ये भी नहीं है, Religion ही है अंततः।

किसी ने कहा है कि-

जहाँ आस्था की प्रधानता होती है वहां सबसे पहले तर्क की हत्या होती है। आस्था मनुष्य को रूढ़ बना देती है!

धर्म एक विशद अवधारणा है। मानव समुदाय का धर्म अधिकांशतः मिथकीय अवधारणाओं पर अवलम्बित होता है। इनका वास्तविक मानव धर्म (अपने निकटतम English word-Righteousness) से कोई लेना देना नहीं होता। और यही कट्टरता विश्व में मानव धर्म की स्थापना होने में बाधक है।

Dharma को धारण करने की प्रक्रिया क्या है?

धार्मिक प्रक्रियाओं में एक प्रमुख प्रक्रिया लोगों को उक्त धर्म (Dharm) में दीक्षित करने की होती है। विश्व के लगभग सभी धर्मों में यह प्रक्रिया पायी जाती है। Hindu Dharm में नामकरण आदि संस्कार, Islam में सुन्नत (खतना), ईसाई धर्म में बपतिस्मा जैसी प्रक्रियाएं होती हैं, जो अति आवश्यक मानी जाती हैं।

बच्चों को बहुत कम उम्र में ये संस्कार प्रारंभिक स्तर पर सम्पन्न कराए जाते हैं। उसे ठीक से यही पता नहीं होता कि वह किस धर्म को “धारण” कर रहा है? वह धर्म कैसा है? उसमें कितनी अच्छाई या बुराई हैं? इस प्रकार के 99% मामलों में बच्चा अपने परिवार के ही धर्म को स्वीकार करता है। धर्म में शामिल करने की यह प्राथमिक प्रक्रिया हैं और यह तभी प्रारंभ कर दी जाती हैं जब बच्चे को विचार या विचारधारा का ठीक से ज्ञान नहीं होता।

लेकिन जब कहीं धर्म पर चर्चा होती है तो लोगों को इस तरह की प्रक्रिया को प्राकृतिक या नैसर्गिक बताया जाता है। गोया कि उस समय हमारे-आपके पास कोई और चुनाव ही नहीं था। धार्मिक और राजनीतिक लोग जोर देकर कहते हैं तुम हिंदू हो, मुसलमान हो, ईसाई हो, सिख हो। वह भी ऐसे जैसे कि यह सब प्राकृतिक और नैसर्गिक है।

जबकि हर व्यक्ति जानता है कि वास्तविकता इससे परे है। हम जन्म से हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिख या किसी भी धर्म के अनुयाई नहीं होते हैं। उक्त धर्म हमें विरासत में थमाया जाता है। यह हमारा चुनाव नहीं होता। यह बात दीगर है कि धर्म की तमाम प्रक्रियाओं से गुजरते हुए बाद में हम चेतन और अवचेतन स्तर पर स्वयं को हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई आदि मानने लगते हैं। यहां तक कि अपने धर्म के लिए जान देने और लेने के लिए भी तैयार हो जाते हैं।

यह बात हमेशा याद रखिए कि प्रकृति ने हमें कोई भी जन्मजात धर्म नहीं दिया है!

विख्यात समाजवादी चिंतक डॉ लोहिया ने कहा था "राजनीति अल्पकालिक धर्म है, और धर्म दीर्घकालिक राजनीति!"

क्या Hindu Dharm में दीक्षा अनिवार्य है?

कुछ लोगों का कहना है 'नहीं' Hindu Dharm ऐसा कोई आग्रह नहीं करता है! इस Dharm को मानने वाले बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो कोई नामकरण वग़ैरह नहीं कराते हैं! वहीं तमाम लोग ऐसे भी हैं जो किसी पंडित के पास यह पूछने नहीं जाते कि हमारे पुत्र या पुत्री के राशि का नाम क्या है?

जब दीक्षा अनिवार्य नहीं है! तब आप हिन्दू कैसे हुए? कैसे अपने जाना कि आप हिन्दू हैं? आपके नाम के साथ फलां सरनेम कैसे आया?

नाम का क्या है वो तो कुत्ते-बिल्लियों के भी होते हैं!

आप दीक्षा को परम्परागत अर्थ में ग्रहण न करें। अगर पण्डित या पुरोहित के यहां जाना जरूरी नहीं। हालांकि अभी भी बहुत से लोग ऐसा करते हैं। लेकिन ऐसा न करने पर भी धार्मिक प्रक्रिया बनी रहती है। सामान्यतः कुत्ते-बिल्लियों के नाम जाति या धर्म सूचक नहीं होते। यदि आप ऐसा करते हैं तो लोग बुरा मान सकते हैं।

Dharm किन समस्याओं की जड़ है?

The Kashmir Files, The Kerala Story, Parzania, Godhra Tak, Pinjar जैसी बहुत सी फिल्में और ढेर सारा साहित्य यही दर्शाता है की सारी घृणा, पूर्वाग्रहों, दंगों और समस्याओं की जड़ यह Dharm है। आप हिन्दू हों या मुस्लिम हों या किसी और धर्म के मानने वाले। सभी धर्म मनुष्यता को बांटते हैं और उनमें जहर भरते हैं। मार्क्स ने लिखा था कि धर्म अफीम है, लेकिन वह गलत था। धर्म वास्तव में जहर है जिसे बचपन से ही हमारी नसों में डाला जाता है। राजनीतिक स्वार्थ में लिप्त लोग केवल धर्म का लाभ उठाते हैं। वे वोट के लिए अपनी जीभ लपलपाते रहते हैं।

क्या समस्याओं की जड़ धर्म नहीं मानसिकता है?

बहुत सी मानसिकताएं Dharm से जुड़ी पायी जाती हैं।

क्या पवित्रता धार्मिक कर्मकाण्ड तक सीमित है?

धर्म में पवित्रता सिर्फ कर्मकांड तक सीमित नहीं होती। यदि यहीं तक सीमित हो तो कोई बात नहीं। अधिकतर लोगों को धर्म से जुड़ी बहसें असहनीय लगती हैं। यह संभवतः कोई दार्शनिक जैसी बात नहीं है। धर्म पर बहुत से ऐसे प्रश्न होते हैं, जो प्राश्निकता से परे माने जाते हैं। वे इतने अस्पृश्य होते हैं कि उन्हें पूछ भर लेने से आपकी हत्या तक हो सकती है।

धार्मिक तार्किकता सीमाबद्ध होती है। वह बार-बार कहती हैं, “खबरदार! बस अब इससे आगे नहीं”।

माइथोलॉजी और इतिहास में क्या अंतर है?

अगर आप प्रमाण की खोज करेंगे तो किसी भी धर्म का कहीं कोई प्रमाण नहीं मिलेगा क्योंकि सारे धर्म सिर्फ आस्था द्वारा स्थापित किये गए हैं।

जैसे तीसरी सदी से पहले काबा का कोई प्रमाण नहीं मिलेगा। मक्का जैसे किसी शहर का कोई प्रमाण नहीं मिलेगा। जीसस का कोई प्रमाण कभी नहीं मिला और न ही ऐसे किसी ऐतिहासिक पुरुष के होने का कोई भी दस्तावेज कहीं उपलब्ध है।

कहा जाता है कि यहूदियों के पैगंबर मूसा मिस्र में फैरो रामेसेस के समय थे मगर मिस्र के किसी भी दस्तावेज में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जबकि वहां सब कुछ लिखा गया था। ऐसे ही यहूदियों के पैगंबर अब्राहम समेत अन्य का भी कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है।

धर्म सिवाए आस्था के कुछ नहीं है। प्रमाण, तथ्य और विज्ञान का वहां कोई काम नहीं होता। आस्था है तो गंगा मां है नहीं तो सिर्फ़ एक नदी। आस्था है तो काबा खुदा का घर है वरना पत्थर की एक इमारत। आस्था है तो पारसियों के आतिश गाह की अग्नि भगवान स्वरूप है। अन्यथा वो बस एक मामूली सी आग है। सारा खेल आस्था का है। दरअसल आस्था ही भगवान, खुदा और गॉड है। बिना आस्था के धर्म सिवाए कोरी कल्पना के और कुछ नहीं है।

याद रखिए कि धर्म के खिलाफ आवाज सिर्फ निस्वार्थ और निर्भय विचारक ही उठा सकते हैं!

क्या आप धर्म में विश्वास रखते हैं?

भला ये कैसे हो सकता है कि मैं किसी भगवान में विश्वास नहीं रखता तो धर्म का सम्मान क्यों करता हूँ?

मैं इसलिए करता हूं क्योंकि दुनिया भर में करोड़ों लोग अपने धर्म को एक मार्गदर्शक की तरह देखते हैं, धर्म की वजह से उन करोड़ों लोगों के मन में एक उम्मीद जगती है। अपने जीवन में उन्हें कुछ उद्देश्य मिलता है। जिंदगी में कठिनाइयों से लड़ने का एक जरिया मिलता है अगर इसे सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य से देखा जाए तो धर्म लोगों को साथ में जोड़कर रखने का काम भी करता है। ढेर सारे रिवाज, परंपरागत धर्म से ही निकल कर सामने आते हैं। जिनकी अपनी एक अहम भूमिका है। यही कारण है कि मैं अपने आप को एक Hindu Atheist कहलाना ज्यादा पसंद करूंगा।

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