द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम जानेंगे कि नाम में स्वामी ( Swami ) लिखने का क्या अर्थ है? भारत में अधिकांशतः ...
द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम जानेंगे कि नाम में स्वामी (Swami) लिखने का क्या अर्थ है?
भारत में अधिकांशतः धार्मिक व्यवसाय से जुड़े गुरु और सन्यासी अपने नाम के साथ स्वामी लगाते हैं, दक्षिण भारत में तो ये चलन बहुत आम बात है।
कई लोगों को मेरे नाम और फोटो से यह भ्रम हो जाता है, कि यह कोई Dharm Guru है। परन्तु जब वो मेरा परिचय या मेरे धर्म और अन्धविश्वास के विरुद्ध लेख पढ़ते हैं, तो उन्हें बड़ा अजीब लगता है कि ये कैसा Swami है?
स्वामी का क्या अर्थ है?
जानकारी के अनुसार Swami का मतलब मालिक और अंग्रेजी में बोलें तो Owner या Master होता है। मैंने किसी धर्म, व्यक्ति या भगवान को अपना Swami बनने की इज़ाज़त नहीं दी है, और न ही किसी का स्वामित्व करना चाहा है। परन्तु मैं स्वयं का स्वामित्व अवश्य करता हूँ, और ख़ुद मुख्तार अपना मालिक हूँ।
मैं अपना Swami क्यों नहीं हो सकता?
इसमें किसी को क्या दिक्कत है? आखिर मैं अपना Swami क्यों नहीं हो सकता? क्योंकि न तो मैं किसी को अपना Swami बनाना चाहता हूँ और न ही किसी का Swami बनना चाहता हूँ। मेरे सिद्धांत और दर्शन यही कहते है कि हर किसी को अपना Swami ख़ुद होना चाहिए और किस्मत, स्वर्ग, पुनर्जन्म जैसे धार्मिक अंधविश्वासों के स्थान पर स्वयं अपनी जिम्मेदारी लेकर कर्मठ बनना चाहिए।
Swami vs Guru
धर्म के ठेकेदार Swami लोग ही गुरु बन जाते हैं और वो यह नहीं चाहते कि कोई और Swami मतलब ख़ुद का मालिक बने, नहीं तो इनका धंधा कैसे चलेगा? ये तो लोगों को लुंज-पुंज और दास तथा सेवक बना के रखना चाहते हैं, अपना Swami नहीं।
कहने का तात्पर्य यह है कि मैं Swami शब्द को धार्मिक प्रकाश में न देखकर शब्दशः देखता हूँ।
स्वामी आस्तिकों से निकटता के लिए है!
इसके पीछे एक और विचार काम करता है, कि अगर ये फोटो और नाम न हो तो केवल नास्तिक लोग ही मेरे चारों तरफ इकट्ठे हो जायेंगे और उन्हें कोई सन्देश देने की जरूरत नहीं है।
मैं जो असल में लिखता हूँ वो तो आस्तिक और जो धर्म का दोगला चेहरा लगाए बैठे हैं अथवा धर्म और परम्पराओं के जाल में जकड़े हुए हैं, उनके लिए है कि उन्हें थोड़ी तो बात समझ में आये। तो जो लोग बिना परिचय पढ़े, धोखे से आ जाते हैं केवल नाम और फोटो देखकर उन्हें भली-भांति सही परिचय मिल जाता है।
भले ही थोड़ा पर कुछ सीख के जाते हैं, और आशा करता हूँ कि कभी तो वो समझेंगे और धर्म के द्वारा रचित भ्रम से बाहर निकलेंगे। क्योंकि इससे मैं खुद भी बाहर ही निकला हूँ, किसी समय में, मैं खुद भी बहुत बड़ा धार्मिक हुआ करता था, और मैंने भोगा है उसे, इसलिए आपबीती और स्वयं के अनुभव लिखता हूँ।
मैं स्वयं इस भ्रम से बाहर आया हूँ!
और बहुत खुश हूँ कि बाहर निकल आया उस भ्रम से। सत्यता यही है कि धर्म, गुरु और आस्था ये सब मेरा भूतकाल था इसी में जीया हूँ मैं तभी वर्तमान में अपने नाम के साथ "भूतपूर्व गुरु" भी लिखता हूँ। और वो गुरुबाजी चली भी बहुत अच्छी तरह, हजारों की भीड़ इकट्ठी करी और बड़े-बड़े पैसे वालों को भी देखा बड़े-बड़े मंत्री-संत्री, गवर्नर और पूर्व राष्ट्रपति भी प्रवचनों में आये, परन्तु जीवन में घटी कुछ घटनाओं ने दिल-दिमाग को बहुत झकझोर दिया था, और फिर ख़ुद की सोच तथा जीवन को जीने का सारा तरीका ही बदल गया। मैंने उन परिवर्तनों को खुले मन से स्वीकार किया और जीवन को नए ढंग व सिरे से जीना प्रारंभ किया तथा कई पड़ाव पार करके आज की स्थिति पर पहुंचा हूँ।
तुम भी धर्म के धोखे से बाहर निकलो !
यदि सच में खुश रहना चाहते हैं तो धर्म के धोखे से बाहर निकलिए।
धर्म आपका शोषण ही करेगा, पापी और पतित ही बनाकर रखेगा। उस अपराध के लिए ग्लानि में सड़ाएगा जो कि न तो आपने किया है और जिस पर न ही कोई आपका वश था।
धर्म, आस्था के धंधेबाजों को झूठा स्वामी बनाता है। जो आपके पैसे पर मज़ा करेंगे और आपको पापी, पतित, दीन-हीन, सेवक, दास बना देंगे। इस दृष्टि से देखें तो मेरे इस लक्ष्य में मेरा व्यक्तित्व सहायक ही होता है और अक्सर धार्मिक लोग भी नाम तथा फोटो देखकर पंगा लेने आ जाते हैं, और फिर खाली हाथ नहीं बल्कि कुछ तो ले के ही जाते हैं।
अगर मेरा ये नाम और फोटो न हो और मैं भी सबकी तरह जींस टी-शर्ट पहनने लग जाऊं, तो कोई क्यों मेरे पास धर्म का कच्चा चिठ्ठा सुनने आएगा? इसलिए आप ये कह सकते हैं कि मैंने अपने नाम के साथ ये "Swami" साजिशन लटका रखा है।
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