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Democracy | लोकतंत्र क्यों बेहतर है?

द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। [ Democracy Explain ] आज की चर्चा में हम जानेंगे कि डेमोक्रेसी यानि  लोकतंत्र क्यों बेहतर है? इसका...

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द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। [Democracy Explain] आज की चर्चा में हम जानेंगे कि डेमोक्रेसी यानि लोकतंत्र क्यों बेहतर है? इसका अर्थ क्या है?

जब कोई समाज यह मान ले कि अब उसे और आगे नहीं बढ़ना, उसकी सारी समस्याएँ हल हो चुकी हैं, तो समझिए कि उसकी रफ़्तार थम चुकी है और वह धीरे-धीरे पतन की ओर बढ़ रहा है।

असंतोष ही जीवन का सार है!
संतोष मृत्यु का दूसरा नाम है!!

लोकतंत्र क्यों आवश्यक है? 

इतिहास गवाह है कि हर क्रांति, हर सुधार, हर परिवर्तन केवल उन्हीं लोगों ने किया जो असंतोष की आग में जल रहे थे। जो वर्तमान व्यवस्था से खुश थे, वे गुलामी और अंधविश्वास के दलदल में फँसे रहे।

लोकतंत्र [Democracy] इसी असंतोष की परिणति है— ऐसी व्यवस्था जहाँ हर व्यक्ति को शिकायत करने, असहमति जताने और सत्ता से सवाल पूछने का अधिकार मिला है। यह व्यवस्था हमें सिखाती है कि कभी संतुष्ट मत होइए, कभी चुप मत रहिए, कभी यह मत सोचिए कि जो मिल गया, वही काफ़ी है।

  • सॉक्रेटीस ने कहा- “An unexamined life is not worth living.”
  • प्लेटो ने कहा- “Philosophy begins in wonder.”
  • कार्ल मार्क्स ने कहा- “The philosophers have only interpreted the world, in various ways. The point, however, is to change it.”

ये सभी क्रांतिकारी विचार हमें एक ही दिशा में ले जाते हैं— सवाल करने, असंतोष प्रकट करने और बदलाव लाने की दिशा में।

जिसने सवाल करना छोड़ दिया, उसने यह मान लिया कि अब सब ठीक है, उसने अपने बौद्धिक और सामाजिक पतन पर मुहर लगा दी। लोकतंत्र इसीलिए सबसे बड़ी क्रांति है, क्योंकि इसने हर आदमी को दार्शनिक [Philosopher] बना दिया। 

हर नागरिक अब सत्ता से, समाज से, अपनी परिस्थितियों से सवाल करता है।

अरस्तू ने कहा था कि मनुष्य Zoon Politikon यानी राजनीतिक प्राणी है— लोकतंत्र इसी का चरम रूप है, जहाँ हर व्यक्ति को शिकायत करने, असहमति जताने और व्यवस्था को चुनौती देने का अधिकार है। लोकतंत्र वही समाज बनाता है जो कभी संतोष से ग्रस्त नहीं होता, जहाँ हर पीढ़ी पिछली से बेहतर दुनिया की माँग करती है।

लोकतंत्र का अर्थ क्या है?

कभी खुश न होना, कभी संतुष्ट न होना, कभी चुप न रहना! हम दुनिया के सबसे अच्छे दौर में जी रहे हैं, लेकिन हम ऐसे चीखते-चिल्लाते हैं जैसे नरक में धकेल दिए गए हों। इंसानों की तादाद सात गुना बढ़ गई, खेतों में हल चलाने वाले हाथ गायब हो गए, लेकिन अनाज इतना पैदा हो रहा है कि अब भूख नहीं, बल्कि मोटापा महामारी बनने जा रहा है!

कभी 80% लोग रोटी के एक टुकड़े के लिए तरसते थे, आज सिर्फ़ 8.5% लोग गरीबी में हैं। कभी 88% लोग अनपढ़ थे, अब सिर्फ़ 10% रह गए हैं। औसत जीवनकाल 30-35 साल से बढ़कर 74 साल पर पहुँच चुका है। नवजात मृत्यु दर जो कभी 50% थी, अब 4% से नीचे गिर चुकी है। औरतें जो कभी दिनभर चूल्हे-चौके में झोंक दी जाती थीं, अब उनके काम का समय 58 घंटे से घटकर 18 घंटे रह गया है। फिर भी रोना-धोना कम नहीं होता!

हमारी इस शिकायत की सनक से शायद हमारे पूर्वज फटी आँखों से हमें देख रहे होंगे— वे जो किसी तूफान, अकाल, या महामारी में बस मर जाने के लिए छोड़ दिए जाते थे, और उनके पास कोई आवाज़ नहीं थी। और हम? हम हर बात पर हल्ला मचाते हैं! लेकिन यही हल्ला हमें बचाता है।

लोकतंत्र तेज रफ़्तार से भागती गाड़ी है, जिसमें बैठने के बाद हमें सब कुछ चाहिए, और वह भी अभी के अभी! लेकिन इस गाड़ी में गड़बड़ी यह है कि इसमें रिवर्स गियर नहीं है—हम अतीत में लौट नहीं सकते, और जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं, हमारी मांगें बढ़ती जाती हैं। जब यह ज़रा सा भी धीमी होती है, हम चिल्लाने लगते हैं, जैसे भूखा बच्चा दूध के लिए मचलता है। यही लोकतंत्र की ताक़त है! अब कोई भूख से नहीं मरता, तो हमने पोषण की कमी पर रोना शुरू कर दिया। अब जनसंख्या विस्फोट की चिंता नहीं है, क्योंकि प्रजनन दर घट गई, तो हमने ‘जनसंख्या की गुणवत्ता’ की बहस छेड़ दी। जब एक समस्या हल होती है, तो हम दूसरी खोज लेते हैं—और यह अच्छी बात है!

लोकतंत्र ने युद्ध तक को बदल दिया है। पहले राजा अपने सैनिकों को लड़ने भेजते थे और वे चुपचाप मरते थे। कोई आँसू नहीं, कोई विरोध नहीं! लेकिन अब? अमेरिका को वियतनाम और अफगानिस्तान से भागना पड़ा, क्योंकि वहाँ की जनता अपने सैनिकों की मौत बर्दाश्त नहीं कर सकी। हमने राजनीति को भी नंगा कर दिया है! अब कोई भी नेता नालायक़ी करके बच नहीं सकता, क्योंकि जनता उसकी बैंड बजा देती है। अमेरिका में जब तक काले लोग गुलाम थे, तब तक किसी को परवाह नहीं थी, लेकिन जैसे ही उन्होंने लोकतंत्र में अपनी आवाज़ उठाई, नागरिक अधिकारों की क्रांति आ गई।

आज लगता है कि दुनिया पहले से ज़्यादा असंतुष्ट है, लेकिन यही लोकतंत्र की सच्चाई है। युवा ब्रांडेड कपड़े पहनते हैं, महँगे मोबाइल हाथ में लिए घूमते हैं, और फिर भी दुनिया को कोसते हैं। लेकिन क्या यह बुरा है? नहीं! क्योंकि अगर हम चुप हो गए, अगर हमने शिकायत करनी छोड़ दी, तो समाज वहीं लौट जाएगा जहाँ से हम निकले थे—अंधेरे, शोषण और गुलामी के युग में!

लोकतंत्र कभी संतोष में नहीं जीता। लोकतंत्र का असली धर्म है असंतोष— जो कभी रुकता नहीं, जो हमेशा कहता है—"यह काफी नहीं है, हमें इससे भी बेहतर चाहिए!"

@Manoj Abhigyan

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