द भ्रमजाल पर आज के गहन अन्वेषण में हम आधुनिक दर्शन और विज्ञान Simulation Theory in Hindi के सबसे दिलचस्प प्रश्नों में से एक प्रश्न को ...
द भ्रमजाल पर आज के गहन अन्वेषण में हम आधुनिक दर्शन और विज्ञान Simulation Theory in Hindi के सबसे दिलचस्प प्रश्नों में से एक प्रश्न को समझने का प्रयास कर रहे हैं। क्या यह दुनिया एक भ्रमजाल है? क्या पृथ्वी सहित सम्पूर्ण ब्रह्मांड व सभी वास्तविकता वास्तव में एक कृत्रिम सिमुलेशन है? क्या वास्तविकता सिर्फ एक जटिल कंप्यूटर सिमुलेशन है? क्या हम जो देखते हैं वह एक Computer Simulation भर है, कोई Reality नहीं।
इस लेख के जरिए Simulation Hypothesis के बारे में जानेंगे, एक ऐसा आकर्षक सिद्धांत जो यह सुझाव देता है कि हमारी वास्तविकता Artificial Construct हो सकती है, एक अत्यधिक परिष्कृत कंप्यूटर सिमुलेशन (Highly Sophisticated Computer Simulation) के अंदर।
हमें आशा है, आप इस लेख को धैर्य पूर्वक अंत तक जरूर पढ़ेंगे !!
ऊपर के प्रश्न आपको कोरी फ़िलॉसफ़ी लग सकता है, किन्तु यह सच है! आज की Modern Simulation Theory का भी यही कहना है।
इस लेख में पूर्व भारतीय दार्शनिक विचारों के साथ आज के कई वैज्ञानिक अध्ययन को भी सम्मिलित किया गया है। आगे जानेंगे कि कौन-कौन से वैज्ञानिक प्रयोगों ने वास्तविकता के बारे में हमारे दृष्टिकोण बदल दिए हैं? हमारे साथ आप भी ऊपर दिए प्रश्नों के उत्तर को समझने का प्रयास करेंगे।
किसी ने सच कहा है -
"यथार्थ ही कल्पना है, कल्पना ही यथार्थ है!"
मानव जीवन अस्थायी व क्षण भंगुर है, यहां किसी को कुछ पता नहीं कि उसके साथ अगले पल क्या होगा?
क्या संसार एक माया जाल है?
जी हां, भारतीय दर्शन और कई पूर्व दार्शनिकों के अलावा आज की Simulation Theory in Hindi भी यही कहती है।
भगवद्गीता क्या कहती है?
[Simulation theory in books] भारत का आम हिन्दू जिस Philosophy को सबसे ज्यादा महत्व देता है, वह है गीता। श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 7, श्लोक नं. 14 में लिखा है कि-
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥14॥
Simulation Ko Hindi Mein Kya Kahate Hain?
Simulation ko hindi mein 'Maya' kahte hain ! भगवद्गीता के अनुसार "यह संसार एक माया है!" और "माया एक रचना है"!
[simulation meaning in hindi] श्रीमद्भगवद्गीता कहती है, माया की मूल धारणा यह है कि अहं अपूर्ण है। यह संसार खंड-खंड दिखता है। अहं भी खंडित है और संसार में जो कुछ है, सब खंडित है। यहां कुछ भी अनंत नहीं है, कुछ भी असीम नहीं है। संसार का होना ही मूल माया है। हमारा उद्देश्य इस संसार रूपी माया चक्र यानी भ्रमजाल और मोह माया से बाहर निकल कर मोक्ष की ओर प्रयाण करना है। मोक्ष प्राप्त करने के लिए आपको अपने अंदर झांकना होगा कि वास्तव में हम कौन हैं?
कबीरदास ने क्या कहा है?
कुछ लोग में अतीन्द्रिय ज्ञान होता है। कबीरदास 15वीं शताब्दी में जन्में भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। उनका एक प्रसिद्ध दोहा है, जिसमें गूढ़ अर्थ छिपा है, उन्होंने कहा है कि -
माया महा ठगनी हम जानी !
कबीर दास जी ने अगर यह बात कही तो निश्चित रूप से कुछ सोच-समझकर ही कहा होगा।
अद्वैतवाद क्या कहता है?
[advaitvad philosophy in hindi] भारत का एक दर्शन अद्वैत वेदांत बहुत प्रसिद्ध है, करीब 3000 साल पहले इसकी रचना की गई थी। अद्वैतवाद का एक शब्द है, माया, मिथ्या। आपने सुना होगा कि ये जगत मिथ्या है, ये संसार स्वप्न मात्र है।
अद्वैत वेदांत की व्याख्या कई लोगों ने की, लेकिन जिस व्यक्ति का नाम सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ उन्हें सिर्फ 32 साल की उम्र में Higher Authority ने अपने पास बुला लिया। यानि ईश्वर को प्यारे हो गए। लेकिन उससे पहले उन्होंने ऐसी स्थितियां पैदा कर दी कि आज तक भारतीय दार्शनिक उसका तोड़ ढूंढ नहीं पाए हैं।
उस व्यक्ति का नाम था, शंकराचार्य या शंकर आचार्य। जिनको आदिगुरु शंकराचार्य या शांकराद्वैत भी कहते हैं। अद्वैत वेदांत के प्रणेता आदि शंकराचार्य थे। उनका जन्म 788 ईस्वी में हुआ था और उनकी मृत्यु 820 ईस्वी में हुई थी। यही वह शंकराचार्य हैं जिनके अद्वैत वेदांत की गहराई के स्तर पर तुलना करना बड़ा मुश्किल काम है।
पहली बात तो मिथ्या का मतलब केवल झूठ नहीं होता है। यह लोगों में गलतफहमी है। मिथ्या का मतलब होता है- जो न सच है, न झूठ है। जो सच और झूठ से परे है, वह मिथ्या है। अद्वैत वेदांत को पढ़ने के बाद ये सच में लगता है कि हम जिस दुनिया में है, वो रियल नहीं है। आदिगुरु शंकराचार्य का कहना भी है, कि यह जगत न Real है न Unreal है। वास्तविक और अवास्तविक से भिन्न जो भी है वो मिथ्या है, पूरा जगत मिथ्या है।
अद्वैत वेदांत की व्याख्या है कि हम सब जो भिन्न-भिन्न हैं, यह हमें प्रतीत होता है। हम भिन्न-भिन्न है नहीं। ये एक Confusion है, गलतफहमी है। हम दरअसल आत्मा है, हम खुद को जीव समझ रहे हैं। एक सबसे Interesting बात उन्होंने कही है, जो ब्रह्म है, वही सत्य है। ईश्वर भी सत्य नहीं है, ईश्वर और हम और ये जगत या सब व्यावहारिक स्तर पर सत्य है।
Simulation kya hota hai?
[सिमुलेशन उदाहरण] जैसे Metaverse है या Simulation Video Games है। जब तक आप Simulation Video Games में हैं तो वह सब सच है जैसे ही वो ऑफ हुआ, वो झूठ हो गया। यह जगत जब तक सत्य लगता है, तब तक हम भी सत्य है। जगत भी सत्य है, ईश्वर भी सत्य है, लेकिन जैसे ही इस खेल से बाहर निकलेंगे। हम पाएंगे केवल और केवल एक ही चीज सत्य है। वो ब्रह्म है, बाकी सब मिथ्या है।
इसलिए मैं मानता हूँ कि हम सब एक Simulated World में रहते हैं। जो किसी कंप्यूटर के अंदर हो सकता है। मुझे यह दुनिया जिसे आप Real समझते हैं, Real नहीं लगती।
और भी कई ऐसे लोग हैं जो यह मानते है कि यह दुनिया जैसी हमें दिखाई देती है, वैसी है नहीं। यह दुनिया कंप्यूटर कोड का रूप हो सकती है। इस थ्योरी को मानने वाले आज के वैज्ञानिकों के अनुसार इसके एक-दो नहीं पूरे 50% चांस है कि हम किसी के Quantum Computer में रहते हैं।
Nick Bostrom Simulation Theory
[nick bostrom simulation theory in hindi] 2003 में Philosopher निक बोस्ट्रोम ने इस थ्योरी को बहुत ही विस्तार से बताया है। इससे पहले भी Stephen Hawking ने Simulation Theory के बारे में बताया है। एक फिजिसिस्ट सेट लियर्ड तो निक बोस्ट्रोम के आईडिया से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने साल 2016 में इसे आगे बढ़ाते हुए यह कह दिया कि यह दुनिया ही नहीं बल्कि पूरा का पूरा यूनिवर्स यहां तक कि ऐसे कई Multiverse यूनिवर्स भी एक जायंट Cosmic Computer द्वारा बनाए गए Simulation हो सकते हैं।
साल 2020 में Simulation Hypothesis विषय पर पब्लिश एक न्यूज़ आर्टिकल के अनुसार कई डिस्कवरीज और एक्सपेरिमेंट्स के रिजल्ट्स यह बताते हैं कि इस Universe के Simulation होने के चांस बहुत ज्यादा है।
सिमुलेशन थ्योरी क्या कहती है?
आज की उन्नत Computer Simulation Technology के अनुसार हमारा ब्रह्मांड एक आर्टिफिशियल सिम्युलेटेड रियलिटी से बना है जो किसी उन्नत विकसित सभ्यता (Advanced Developed Civilization) का बनाया हो सकता है, इस Artificial Reality में उन्होंने हमें किसी Advanced Technology द्वारा बना कर एक Conscious Mind दिया है।
अब आगे जानते हैं इस Simulation Theory पर हुए कुछ वैज्ञानिक अध्ययन को जिन्होंने कई वैज्ञानिकों को यकीन करने के लिए मजबूर कर दिया है।
1. हमारी Limitations क्यों है? :
वैसे ही आपकी दुनिया में भी कुछ Limitations है, जैसे कि
- कोई भी इंसान प्रकाश की गति से तेज यात्रा नहीं कर सकता।
- कोई भी इंसान ब्रह्मांड में एक लिमिट से ज्यादा नहीं देख सकता। [क्योंकि बड़े से बड़े टेलिस्कोप से भी 135 अरब प्रकाश वर्ष से ज्यादा दूर नहीं देखा जा सकता।]
- कोई भी इंसान किसी मृत शरीर में दोबारा Consciousness नहीं ला सकता।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि कोई कंप्यूटर चाहे कितना भी पावरफुल बना लिया जाए लेकिन फिर भी उसके Processing की Limit तय है। इस प्रोसेसिंग स्पीड को बढ़ाने पर कंप्यूटर Slow Down हो जाता है।
अगर Universe भी एक कंप्यूटर प्रोग्राम है तो इस प्रोग्राम को Run कराने वाले Processor की भी एक Limitations जरूर होगी जिसे आगे बढ़ाने पर कॉस्मिक यूनिवर्स का प्रोसेसर धीमा पड़ जाएगा।
आपको सुनने में यह भले अजीब लगे, लेकिन इस तरह की Limitations ब्रह्मांड में पायी गई है। यह लिमिट है, The Speed of Light की। क्योंकि General Relativity बताती है कि यूनिवर्स में कोई भी ऑब्जेक्ट लाइट की स्पीड से यात्रा नहीं कर सकता।
Accept the Universe Itself : अगर किसी कारण से यूनिवर्स में मौजूद कोई भी ऑब्जेक्ट लाइट के करीबी स्पीड से यात्रा करता है तो उसके आसपास का स्पेस टाइम फैब्रिक बिल्कुल धीमा हो जाएगा और अगर वो ऑब्जेक्ट लाइट स्पीड अचीव कर भी लेता है तो समय और स्पेस टाइम उसके लिए रुक जाएगा। स्पेस टाइम ऐसा करने नहीं देगा स्पेस टाइम लगातार ये ऑब्जर्व करेगा कि संसार की कोई भी भौतिक चीज लाइट स्पीड को अचीव ना कर पाए।
यानी कि हो सकता है कि इस यूनिवर्स को बनाने वाला कॉस्मिक प्रोग्रामिंग कंप्यूटर लाइट स्पीड से चलने पर स्लो हो जाता हो, वो उसका अल्टीमेट बेंचमार्क हो और इस अल्टीमेट बेंचमार्क से ज्यादा तेज चलने की इस प्रोग्रामिंग में कैपेबिलिटी ही ना हो।
2. Elon Musk Argument :
दुनिया के अमीर इंसानों में से एक और सबसे बुद्धिजीवी व्यक्तियों में से भी एक Elon Musk का यह तर्क है कि आज से 40 साल पहले कंप्यूटर सिमुलेशन की दुनिया में हमने सिर्फ एक डॉट और ट्रायंगल वाला गेम डेवलप किया था। लेकिन महज 35 - 40 सालों में टेक्नोलॉजी इतनी आगे बढ़ चुकी है कि आज हमारे पास बिल्कुल रियलिस्टिक लगने वाले गेम्स मौजूद हैं।
इन गेमों को एक साथ एक समय में हजारों लोग खेल सकते हैं। इनके अंदर हजारों सिमुलेशंस के पैटर्न बनते है। ऐसे में वह दिन दूर नहीं जब AI के जरिए हम इस दुनिया के जैसा ही दिखने वाला एक और सिम्युलेटिंग वर्ल्ड बना लेंगे। जो होगा तो एक गेम ही लेकिन इंसान उसमें खुद की मेमोरी को डालकर एक अवतार बना कर एंटर कर सकेंगे। ऐसा बिल्कुल पॉसिबल है कि आने वाले भविष्य में हम Matrix Movie की तरह कंप्यूटर की दुनिया में प्रवेश कर पाएँ।
अगर हम भी ऐसा सिमुलेशन हम बना सकते हैं तो इस बात की क्या गारंटी है कि हमारी दुनिया कोई सिमुलेशन नहीं है।
3. Perfection :
अध्ययन बताते हैं कि हमारी यह दुनिया काफी परफेक्ट है। जहां ब्रह्मांड के सभी पिंडों को यानी कि स्टार प्लेनेट, डर्फ प्लेनेट इन सभी को होल्ड करने के लिए ग्रेविटी है जो उन्हें एक दूसरे से बांधे रखती है और यूनिवर्स के बड़े-बड़े स्ट्रक्चर्स को बनाती है और यूनिवर्स में यही ग्रेविटी गैलेक्सी को एक दूसरे से टकरा कर भी Collapse कर सकती थी, लेकिन ऐसा ना हो इसलिए उन्हें बांधे रखने के लिए डार्क मैटर और डार्क एनर्जी है और यही डार्क मैटर और डार्क एनर्जी सभी गैलेक्सी को एक दूसरे से दूर रखती है और यूनिवर्स को एक्सपेंड करती है।
कई वैज्ञानिकों का तो मानना है कि बिग बैंग के दौरान जो सिंगुलेरिटी एसिस्टेंट में आई थी उसके टेंपरेचर या एनर्जी में अगर रत्ती भर का भी डिफरेंस हो जाता तो इस ब्रह्मांड का निर्माण ही नहीं हो पाता।
उपरोक्त उदाहरण बताते है कि यूनिवर्स एकदम परफेक्ट है। और ऐसा लगता है दुनिया किसी परफेक्ट कंप्यूटर एल्गोरिदम के द्वारा काम करती है।
यानि इस तरह सोचने पर भी लगता है कि यह यूनिवर्स एक सिमुलेशन है।
4. Mathematics :
कई वैज्ञानिक अध्ययन यह बताते हैं कि यूनिवर्स में हर जगह एक पैटर्न काम करता है। हर जगह पर नंबर्स है, हर जगह Perfect Math है। यह इतना ज्यादा परफेक्ट है कि इसमें किसी गलती की कोई संभावना नहीं है।
यूनिवर्स का यह परफेक्शन, यूनिवर्स के अपने लॉज की वजह से है और यह लॉज मैथमेटिक्स की शक्ल में हैं यानी कि ब्रह्मांड की लैंग्वेज मैथमेटिक्स है। आप जानते होंगे कि किसी परफेक्ट डिजाइन बनाने के लिए मैथमेटिक्स की कितनी जरूरत होती है। एक Perfect Computer Program पूरी तरीके से Math आधारित होता है। जिसमें पूरे तरह से परफेक्शन के साथ काम करना होता है। इसलिए भी हो सकता है कि हमारा यूनिवर्स मैथमेटिकल कोडिंग के फॉर्म में प्रोग्राम किया गया हो।
हमारी पृथ्वी पर अभी तक पांच बार एक्सटेंशन हो चुका है मतलब पांच बार जीवों का सफाया हो चुका है यह ऐसा ही है जैसे पांच बार किसी कंप्यूटर को Format करना। उसके बाद फिर से एक नई अपग्रेडेड विंडो डालना। शायद इसीलिए हमारी पृथ्वी पर Life को इतनी बार पुनः स्थापित किया गया हो।
Mathematics यह इशारा करती है कि यह संसार एक कंप्यूटर प्रोग्राम हो सकता है।
5. Electron Weird Behavior :
हमारी दुनिया में इलेक्ट्रॉन Weirdly Behave करते हैं और यह इलेक्ट्रॉन का एक ऐसा बिहेवियर है जो इस बात की ओर इशारा करता है कि हमारी दुनिया किसी प्रोग्रामिंग का हिस्सा है और यह बिहेवियर है इलेक्ट्रॉन का ड्यूल नेचर अगर आपने डबल स्लेट एक्सपेरिमेंट के बारे में सुना है तो आपको पता होगा इलेक्ट्रॉन एक पार्टिकल और वेव दोनों की तरह बिहेव करता है।
कोई चीज या तो वेव होनी चाहिए या तो पार्टिकल लेकिन इलेक्ट्रॉन दोनों की तरह बिहेव करता है। चलो यह भी ठीक है इलेक्ट्रॉन भले ही वेव और पार्टिकल्स की तरफ बिहेव करता हो लेकिन प्रॉब्लम तब खड़ी होती है जब हम उसे ऑब्जर्व करते हैं।
वैज्ञानिकों को डबल स्लेट एक्सपेरिमेंट में बेहद चौंकाने वाले परिणाम मिले। उन्होंने देखा कि एक इलेक्ट्रॉन वेव की तरह पैटर्न बनाता है, यानी कि वेव की तरह बिहेव करता है लेकिन उसी सेम एक्सपेरिमेंट को जब किसी ऑब्जर्वर के कंट्रोल में यानी कि अंडर ऑब्जर्वेशन प्रयोग किया गया तो इलेक्ट्रॉन ने एक पार्टिकल की तरह पैटर्न बनाया।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि इलेक्ट्रॉन को कैसे यह पता चल जाता है कि कोई उसे ऑब्जर्व कर रहा है? क्योंकि हम जब इलेक्ट्रॉन को ऑब्जर्व नहीं करते है तब प्रयोग में वह एक वेव की तरह बिहेव करता है। वेव्स की तरह नतीजे देता है, जब उसे ऑब्जर्व करते हैं तब वह सीधा पार्टिकल बन जाता है।
ऐसा लगता है कि इलेक्ट्रॉन को शायद पता चल जाता हो कि उन्हें कोई ऑब्जर्व कर रहा है और ऐसे में वैज्ञानिकों ने एक निष्कर्ष निकाला कि इलेक्ट्रॉन के ऐसे दोहरे चरित्र का एक कारण यह हो सकता है कि हम सब एक कंप्यूटर प्रोग्राम का हिस्सा हो और इस प्रोग्रामिंग में इलेक्ट्रॉन को ऐसे ही प्रोग्राम किया गया हो ताकि जब हम इलेक्ट्रॉन को ऑब्जर्व करें, तब वह हमें पार्टिकल की तरह दिखे और जब हम उसे ऑब्जर्व ना करें तब वह एक वेव की तरफ परफॉर्म करें। क्वांटम पार्टिकल इलेक्ट्रॉन का यह दोहरापन बताता है कि हमारी दुनिया एक सिमुलेशन हो सकती है जहां पर उनका यह बिहेवियर पहले से फिक्स है।
6. Quantum Entanglements :
Electron की तरह Quantum दुनिया का एक और रहस्य है जिसे Quantum Entanglements कहा जाता हैं।
उदाहरण :
मान लीजिए कि, आपके पास दो पासे हैं। और जब-जब उन्हें उछाला जाता हैं तो उनका सम आठ ही आता है। अब ये दोनों पासे एक दूसरे से चाहे कितने भी दूर क्यों ना कर दिए जाएँ। पृथ्वी या ब्रह्मांड के किसी भी हिस्से में क्यों ना भेज दिए जाएँ। जब आप इन दोनों को एक साथ उछालेंगे तब दोनों का सम आठ ही आएगा। यानि कि अगर एक पर छह आता है तो दूसरे पर दो ही आएगा। एक पर अगर पांच आता है तो दूसरे पर तीन आएगा। ऐसे टोटल उनका सम आठ ही होगा।
आखिर दूसरे पासे को कैसे पता चल जाता है कि पहले पासे पर क्या आएगा? फिर भी ऐसा संभव है। तो फिर यह मानना पड़ेगा कि दोनों पासो के बीच किसी भी तरह की इंफॉर्मेशन का ट्रांसफॉर्मेशन होता है।हो सकता है कि इंफॉर्मेशन के आदान-प्रदान से दोनों पासे एक दूसरे से कनेक्टेड हो जाते हों। वैसे तो ऐसे कोई पासे इस पृथ्वी पर रियलिटी में मौजूद नहीं है, किन्तु क्वांटम वर्ल्ड में ऐसा होता देखा गया है।
Quantum Physics में यही सब होता पाया गया है। जब किसी दो एक्टन पार्टिकल्स को ऑब्जर्व किया जाता है तब हर बार अगर पहले पार्टिकल के स्पिन राइट साइड मिलती है तो दूसरे पार्टिकल की स्पिन हमेशा लेफ्ट साइड ही मिलेगी चाहे दूसरे पार्टिकल को पहले पार्टिकल से कितना भी दूर ब्रह्मांड में क्यों ना ले जाया गया हो। मान लीजिए कि इनके बीच किसी तरह के इंफॉर्मेशन का ट्रांसफर होता है, तो फिर यह बात भी माननी पड़ेगी कि इंफॉर्मेशन का यह ट्रांसफॉर्मेशन लाइट की स्पीड से ज्यादा तेज गति से नहीं हो सकता है और ऐसे में क्वांटम एंटेंगलमेंट यह इशारा करता है कि हमारी दुनिया एक सिमुलेशन है क्योंकि यह इंफॉर्मेशन का ट्रांसफर किसी विशाल एडवांस कंप्यूटर के अंदर तक ही सीमित है जहां पर स्पीड ऑफ लाइट का लो वायलेट नहीं हो रहा।
इससे यह संभव है कि यह दुनिया एक कंप्यूटर प्रोग्राम है।
7. Alien Life
Alien Life - ब्रह्मांड बहुत बड़ा है और इस बड़े ब्रह्मांड में असंख्य गैलेक्सियां हैं सिर्फ हमारी आकाशगंगा यानि Milky Way में ही 10 अरब से ज्यादा तारे हैं। इसमें भी अरबों तारे ऐसे हैं जो Habitable Zone में आते हैं जहां पर जीवन पनपने की गुंजाइश बहुत ज्यादा है। अगर Milky Way के बाहर ना भी जाएँ तो भी कई सारी जगह पर पृथ्वी के अलावा जीवन होना चाहिए।सोचिए हमारे ब्रह्मांड में तो कितनी जगह पर जीवन हो सकता है लेकिन वर्षों से हो रही खोजबीन के बावजूद ब्रह्मांड में कहीं और जीवन नजर नहीं आ रहा है। तब यह सवाल उठता है कि आखिर पृथ्वी के अलावा कहीं और जीवन क्यों नहीं मिला? इसका सीधा सा जवाब Simulation Hypothesis ही दे सकती है।
हो सकता है कि इस Universe को ऐसे ही डिजाइन किया गया हो कि इसमें अन्य ग्रहों पर जीवन तो है लेकिन किसी भी तरह हम उसे ऑब्जर्व नहीं कर सकते। या फिर उन सभी अन्य ग्रहों का जीवन अन्य Parallel Universe यानी कि दूसरे कंप्यूटर प्रोग्राम में चल रहा हो। और हमारा जीवन किसी अलग कंप्यूटर प्रोग्राम का हिस्सा हो और जिस वजह से हम चाहकर भी आज तक दूसरे प्रोग्राम से या दूसरे जीवों से संपर्क नहीं कर पाए हो और इस तरीके से इस आर्गुमेंट से भी यही लगता है कि हमारा यह ब्रह्मांड एक कंप्यूटर प्रोग्राम हो सकता है।
मैंने सिमुलेशन की दुनिया आपको समझाने के लिए उपरोक्त सिर्फ सात कारण बताएँ हैं, किन्तु वैज्ञानिकों के पास आज ऐसे और भी कई सारे कारण मौजूद हैं।
कैसे भ्रमजाल से बाहर निकला जा सकता हैं?
इस Matrix World से बाहर निकलने के लिए इसके Source Code को ढूँढना होगा। लेकिन उसके पहले इसकी Programming Languages को समझना होगा। ऐसे प्रोग्राम लिखने होंगे जिसके द्वारा संसार को चलाने वाले हायर सिविलाइजेशन से संपर्क साधा जा सके।
यह भी हो सकता है कि हम उस सिविलाइजेशन के द्वारा किए गए महज एक एक्सपेरिमेंट हो और वह यह देखना चाहते हो कि हम इस सच्चाई का पता लगाकर उनसे कैसे कम्युनिकेट कर पाते हैं।
लेकिन ऐसे में इस बात का भी क्या सबूत है कि हमें ऑपरेट करने वाली कोई हायर सिविलाइजेशन भी किसी और सिविलाइजेशन का कोड ना हो। यहां जाकर एक Infinity का भंवर शुरू होता है जिसका कोई अंत नहीं है। हो सकता है कि यह कभी ना खत्म होने वाले चेन की तरह चलता जा रहा हो।
इस बात की पूरी संभावना है कि Future में अधिक Advance Technology के साथ ऐसे ही किसी Simulated Reality बनाकर हम उस रियलिटी में चेतना Create करके उसे नियंत्रित कर पायें।
अगर यह संसार वाकई में, माया (Simulation) है तो बाहर की दुनिया सिर्फ़ एक प्रोग्राम है। उसमें झांक कर आप क्या करेंगे? वहां उलझे रह जाएंगे, अगर इससे बाहर निकलना है तो अपने अंदर झांकना होगा यानी कि अपने दिमाग में अपने मन में। क्योंकि यही उस सिम्युलेटिंग वर्ल्ड से कनेक्टेड है। जैसे-जैसे आप अपने अंदर झांकते जाते हैं वैसे-वैसे इस संसार रूपी माया से ऊपर उठते जाते हैं। इस भंवर से बाहर निकलते जाते हैं। मोक्ष की ओर प्रयाण करते जाते हैं।
Hindi Documentary on Computer Simulation :
- Simulation Theory Explained In Hindi - https://youtu.be/k7Wb5J1aQz4
Research papers and sources :
- Objectivity : Internet Encyclopedia of Philosophy
- The Objective Reality : Joan Vaccaro
- Are you living in a Computer Simulation? : Argument By Nick Bostrom
- Illustris Project
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