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आयत 4:34 इतनी विवादित क्यों है?

द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज चर्चा में हम जानेंगे कि  Surah Nisa | Ayat 4:34 इतनी विवादित क्यों है? Surah Nisa - 4:34 | Wif...

Surah-Al-Nisa-Ayat-4-34-Hindi

द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज चर्चा में हम जानेंगे कि Surah Nisa | Ayat 4:34 इतनी विवादित क्यों है?

Surah Nisa - 4:34 | Wife Beating in the Quran सूरह निसा का बिल्कुल सीधा सा Translation यह है! कि अगर औरत आपकी बात न माने तो आप उसे ‘मार’ सकते हैं। इसमें कोई भी किन्तु-परंतु नहीं जुड़ा है। लगभग 30-40 साल पहले तक, कोई भी इस आयत में कही गयी क्रूर बात पर सवाल नहीं उठाता था। क्योंकि एक तरह से उस समय तक यह सब को स्वीकार्य था। औरत बात न माने तो उसे मारो। इसमें लोगों को कोई ग़लत बात नहीं लगती थी। वो समझते थे कि जैसा हम इंसान समझते हैं वैसे ही ख़ुदा Qur'An के Surah Nisa (Surah an nisa) में समझा रहा है।

Surah Nisa | लोगों की समझ कब बदली?

Quran-Surah-Al-Nisa-Ayat-4-34-Arabic
👈 Qur'an verse 4:34 in Arabic.
According to the majority of Qur'anic translators and the Arabic lexicon[1], the Arabic phrase Idri-boo-hunna which appears in Qur'an 4:34 (highlighted in blue) means "beat them".

लेकिन जैसे-जैसे समय बदला, Surah Nisa (Surah Al-Nisa) की इस Ayat पर ऐतराज़ शुरू हो गया। महिलाओं ने मौलानाओं से इस बाबत सवाल पूछना शुरू कर दिया कि कैसे कोई ख़ुदा महिलाओं को मारने की बात कर सकता है? जबकि आदमी को तो मारने के लिए पूरी क़ुरान में कहीं नहीं कहा गया है? जब इस आयत पर बहुत ज़्यादा आवाज़ें उठने लगी तब इस्लाम के आलिम और मौलाना इन सवालों को लेकर बगलें झांकने लगे। फिर चंट चालाक और धूर्त धार्मिकों ने अपना काम शुरू हुआ किया। उन्होंने इस Ayat का Translation अपने-अपने ढंग से कर के लोगों को समझाना शुरू किया।

ये बताने लगे कि Surah Nisa (Quran Surah An-Nisa) की Ayat 4:34 में लिखा हुआ शब्द है ‘व अग़रिबूहुन्ना’। जिसका सीधा अर्थ होता है कि "उन्हें (औरतों को) मारो", जिसका मतलब यह नहीं है जो लोग समझ रहे हैं। इसका मतलब है कि डाँटो, हल्के से धक्का दो, ज़ोर से चिल्लाओ। वग़ैरह वग़ैरह...

Surah Al-Nisa | धूर्तों ने क्या कहा?

फिर धार्मिकों को जब इन धूर्तों ने ये Surah Al-Nisa का अनुवाद पकड़ाया तो वो उसे ले उड़े और उछल-उछल कर लोगों को समझाने लगे कि देखो, ख़ुदा ने यह कहा है। इसका मतलब हम लोग 1400 साल से ग़लत समझ रहे थे, अब फ़लाने आलिम साहब ने हमें इसका सही मतलब समझाया है।

अब तो इस अनुवाद को धार्मिक महिलाओं ने भी समझ लिया। क्योंकि वो तो पहले से ही यही समझने के लिए बैठी थी। बस बेचैन थी कि ऊपर से कोई उनको इस मसले पर ‘चाशनी’ लगा के पकड़ा दे। ताकि वो बाकी लोगों को समझा सकें कि उनका ख़ुदा कोई ‘महिला विरोधी’ नहीं है।

ऐसे ही शातिर और धूर्त अनुवादक हर धर्म में रहते हैं। जब उन्हें लगता है कि उनकी धर्म सत्ता एक छोटे से सूत्र से हिलने वाली है तब वह उस सूत्र का नया अनुवाद पेश करते हैं। यह सब उनके घर की खेती होती है। यह सारी रचनाएं इन्हीं जैसे लोगों की गढ़ी हुई होती हैं। इसलिए ये आपको जो चाहें समझा दें और आप खुशी-खुशी समझ जाते हैं। क्योंकि आप समझने के लिए तो बैठे हैं। क्योंकि आप अंदर से बेचैन हैं, दिमाग ऐसी बेतुकी बातों को स्वीकार नहीं करना चाहता है। लेकिन आप चाहते हैं कि कोई एक मिल जाये जो इसे समझा दे जैसा आप समझना चाहते हैं। यही पर धूर्तों का काम आसान हो जाता है।

आपका धर्म ऐसे ही फलता फूलता रहता है। ज़रा सोचिए ऐसी चालाकियों से कितने दिनों तक आप अपने धर्म को संभाल पाएंगे? आज नहीं तो कल लोग जानेंगे और जागेंगे। फिर धूर्तता भरे अनुवादों को आप के ही मुंह पर दे मारेंगे।

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