The Bhramjaal में एक बार फिर आपका स्वागत है। [Adhikar] आज की चर्चा में हम जानेंगे कि अधिकार का भ्रमजाल क्या है? आपके रहने का अधिकार, जीन...
The Bhramjaal में एक बार फिर आपका स्वागत है। [Adhikar] आज की चर्चा में हम जानेंगे कि अधिकार का भ्रमजाल क्या है?
आपके रहने का अधिकार, जीने का अधिकार, खाने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और न जाने कौन-कौन से अधिकार। ये सब आपने बनाए हैं, प्रकृति ने नहीं !!
यह आपके दिमाग़ का फितूर है.. प्रकृति के पास अधिकार जैसा कोई शब्द नहीं है... प्रकृति किसी को कोई अधिकार नहीं देती है...
कोई आपको ले जा कर Serengeti के जंगल में खड़ा कर दे और कहे कि जाइए, मांगिए प्रकृति से अपना अधिकार.. तो वहां आप अपनी जान बचाते फिरेंगे.. न शेर आपके "अधिकार" का फितूर सुनेगा और न गैंडा!
जिस समाज में पैदा होते हैं उसमें आंख खोलते ही आप इतनी ज़्यादा क्रांति देखने लगते हैं कि आपका दिल-दिमाग जीवन को वैसे ही सोचने और समझने लगता है... जबकि जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है!
बेटे पर मां-बाप का अधिकार, पति पर पत्नी का अधिकार, पत्नी पर पति का अधिकार, दलित को आरक्षण का अधिकार, रिश्तेदारों का एक दूसरे पर अधिकार, मजदूरों को नौकरी का अधिकार.. जाने कितने अधिकारों की लड़ाई नाहक चलती रहती है...
वर्तमान में हो रहे युद्ध भी अधिकारों की लड़ाई है.. जबकि किसी का कहीं कोई अधिकार नहीं है, जिसकी लाठी उसकी भैंस होती है।
बताईए, मानवाधिकार क्या है?
कुछ नहीं.. सिर्फ एक परिभाषा गढ़ दी गई है जिस पर कुछ लोग विश्वास करते हैं.. जबकि हर देश अपने हिसाब से चलता है.. सऊदी के अपने मानवाधिकार हैं और फ्रांस के अपने.. इसीलिए आप कभी एक परिभाषा में सबको फिट नहीं कर सकते हैं।
किसी देश में उनके अधिकार की जो परिभाषा है, वह कानूनी रूप से मान्य है वही आपका "अधिकार" है!
आप फ्रांस में नंगे घूम सकते हैं, सऊदी में नहीं... इसलिए अधिकारों की परिभाषा जो जैसी चाहे वैसी बना ले... क्योंकि अधिकार पर कोई प्राकृतिक नियम लागू नहीं है.. प्रकृति का ऐसा कोई सिद्धांत नहीं होता है.. ये सब आपका बनाया भ्रमजाल है, जिसमें आप खुद फँस गए हैं।
किसी का किसी पर कोई अधिकार नहीं होता है.. अकबर से लेकर पृथ्वीराज चौहान तक सब अपना अपना अधिकार छोड़ कर चले गए.. एक दिन हम आप भी वैसे ही चले जाएंगे, यहां आपका कुछ नहीं है, जिस पर आप अपना अधिकार जता सकें।
जब तक जिंदा हैं तब तक तमाम क्रांति के लिए ये सारी भसड़ चलती रहती है.. लेकिन अंदर से मानते रहिए कि यह सब सामाजिक है और इसका आपसे कोई लेना देना नहीं है।
ये सब आप ऐसे ही एक दिन छोड़कर फुर्र हो जाएंगे, फिर दूसरे आकर अपनी भसड़ मचाएंगे।
~सिद्धार्थ ताबिश
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