The Bhramjaal में एक बार फिर से आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम बात करेंगे कि इमाम हुसैन का भारत से क्या रिश्ता था? Imam Hussain Karbal...
The Bhramjaal में एक बार फिर से आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम बात करेंगे कि इमाम हुसैन का भारत से क्या रिश्ता था?
Imam Hussain Karbala Story in Hindi- इस वर्ष मुहर्रम का महिना 11 अगस्त से शुरू होगा। मुहर्रम का दसवां दिन सबसे खास माना जाता है। जिसे ‘आशूरा’ कहा जाता है, इसी दिन मुहर्रम का मातम होता है। 17 जुलाई 2024 शुक्रवार को मुहर्रम की दसवीं तारीख है। जिस दिन मुहम्मद साहब के नवासे हजरत अली के पुत्र Imam Husain इब्न अली की कर्बला की जंग में हुई शहादत को याद करने के लिए शिया समुदाय शोक मनाते हैं।
आगे जानने के लिए पढ़िये Hassan Hussain Story.
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक़ इमाम हुसैन (हुसैन इब्न अली) का जन्म 3 शाबान, सन 4 हिजरी (यानी 8 जनवरी सन 626) को सऊदी अरब के शहर मदीना में हुआ था। (इस्लामी कैलेंडर में शाबान हिजरी का आठवां महीना कहा जाता है) यह रमज़ान के माह से पहले आता है। भारत के मुस्लिम इसी तारीख को उनका यौमे पैदाइश मनाते हैं।
(इसके संक्षिप्त कारण और सबूत के उपलब्ध वेब लिंक नीचे दिए गए हैं।)
Husain | इमाम हुसैन क्यों भारत आना चाहते थे?
इमाम हुसैन और भारत
इमाम हुसैन और भारत - इस्लाम के काफी पहले से ही भारत, ईरान, और अरब में व्यापार होता रहता था। इस्लाम के उदय से ठीक पहले ईरान में सासानी खानदान के 29वें और अंतिम आर्य सम्राट "यज्देगर्द (590 ई॰) की हुकूमत थी। उस समय ईरान के लोग भारत की तरह अग्नि में यज्ञ करते थे। इसीलिए "यज्देगर्द" को संस्कृत में यज्ञकर्ता भी कहते थे।
प्रसिद्ध इतिहासकार राज कुमार अस्थाना ने अपने शोधग्रंथ "Ancient India" में लिखा है कि सम्राट यज्देगर्द की तीन पुत्रियाँ थी, जिनके नाम मेहर बानो, शेहर बानो, और किश्वर बानो थे। यज्देगर्द ने अपनी बड़ी पुत्री की शादी भारत के राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय से कराई थी। जिसकी राजधानी उज्जैन थी और राजा के सेनापति का नाम भूरिया दत्त था। जिसका एक भाई रिखब दत्त व्यापार करता था। यह लोग कृपाचार्य के वंशज कहलाये जाते हैं। चन्द्रगुप्त ने मेहर बानो का नाम चंद्रलेखा रख दिया था। क्योंकि मेहर का अर्थ चन्द्रमा होता है... राजा के मेहर बानो से एक पुत्र समुद्रगुप्त पैदा हुआ।
ध्यान रहे कि ये सारी घटनाएँ छठवीं शताब्दी की हैं।
यज्देगर्द ने अपनी दूसरी बेटी शेहरबानो की शादी Imam Hussain (Husayn ibn Ali) से करा दी थी। उससे जो पुत्र हुआ था उसका नाम "जैनुल आबिदीन" रखा गया। इस तरह समुद्रगुप्त और जैनुल अबिदीन मौसेरे भाई थे। इस बात कि पुष्टि "अब्दुल लतीफ़ बगदादी (1162-1231) ने अपनी किताब "तुहफतुल अलबाब" में भी की है। और जिसका हवाला शिशिर कुमार मित्र ने अपनी किताब "Vision of India" में भी किया है।
अत्याचारी यजीद का राज
Imam Hussain के पिता Hazrat Ali चौथे खलीफा थे। उस समय वह इराक के शहर कूफा में रहते थे। हजरत अली सभी प्रकार के लोगों से प्रेमपूर्वक बर्ताव करते थे। उनके काल में कुछ हिन्दू भी वहां रहते थे। लेकिन किसी पर भी इस्लाम कबूल करने पर दबाव नहीं डाला जाता था।
ऐसा ही एक परिवार रिखब दत्त का था जो इराक के एक छोटे से गाँव में रहता था, जिसे अल हिंदिया कहा जाता है। जब सन 681 में हजरत अली का निधन हो गया तो, मुआविया बिन अबू सुफ़यान खलीफा बने वह बहुत कम समय तक रहे। फिर उसके बाद उनका लड़का यजीद सन 682 में खलीफा बन गया।
यजीद एक अय्याश व अत्याचारी व्यक्ति था। वह सारी सत्ता अपने हाथों में रखना चाहता था। इसलिए उसने सूबों के सभी अधिकारियों को पत्र भेजा और उनसे अपने समर्थन में बैयत (oth of allegience) देने पर दबाव डाला। कुछ लोगों ने डर या लालच के कारण यजीद का समर्थन कर दिया। लेकिन Imam Husain ने बैयत करने से साफ मना कर दिया।
यजीद को आशंका थी कि यदि Imam Hussain (Husayn ibn Ali) भी बैयत नहीं करेंगे तो उसके लोग भी इमाम के पक्ष में हो जायेंगे। यजीद तो युद्ध की तैयारी करके बैठा था। लेकिन Imam Hussain युद्ध को टालना चाहते थे, यह हालत देखकर शेहर बानो ने अपने पुत्र जैनुल अबिदीन के नाम से एक पत्र उज्जैन के राजा चन्द्रगुप्त को भिजवा दिया था।
इमाम हुसैन की पत्नी को भेजे पत्र का क्या हुआ?
वो आज भी जयपुर महाराजा के संग्राहलय में मौजूद है। बरसों तक यह पत्र ऐसे ही दबा रहा, फिर एक अंग्रेज़ अफसर Sir Thomas Durebrught ने 26 फरवरी 1809 को इसे खोज लिया और पढ़वाया, और फ़िर राजा को भिजवा दिया, जब यह पत्र सन 1813 में प्रकाशित हुआ तो सबको पता चल गया। उस समय उज्जैन के राजा ने करीब 5000 सैनिकों के साथ अपने सेनापति भूरिया दत्त को मदीना की तरफ रवाना कर दिया था।
लेकिन Imam Hussain तब तक अपने परिवार के 72 लोगों के साथ कूफा की तरफ निकल चुके थे, जैनुल अबिदीन उस समय काफी बीमार था, इसलिए उसे एक गुलाम के पास देख-रेख के लिए छोड़ दिया था। भूरिया दत्त ने सपने में भी नहीं सोचा था कि Imam Hussain अपने साथ ऐसे लोगों को लेकर कुफा जायेंगे जिन में औरतें, बूढ़े और दूध पीते बच्चे भी होंगे।
उसने यह भी नहीं सोचा था कि मुसलमान जिस रसूल के नाम का कलमा पढ़ते हैं उसी के नवासे को परिवार सहित निर्दयता से क़त्ल कर देंगे। और यजीद इतना नीच काम करेगा। वह तो युद्ध की योजना बनाकर आया था। तभी रस्ते में खबर मिली कि इमाम हुसैन का क़त्ल हो गया।
यह घटना 10 अक्टूबर 680 यानि 10 मुहर्रम 61 हिजरी की है। यह हृदय विदारक खबर पता चलते ही वहां के सभी हिन्दू (जिनको आजकल हुसैनी ब्राहमण कहते है) मुख़्तार सकफी के साथ Imam Hussain के क़त्ल का बदला लेने को युद्ध में शामिल हो गए। इस घटना के बारे में "हकीम महमूद गिलानी" ने अपनी पुस्तक "आलिया" में बड़े विस्तार से लिखा है।
Hazrat Imam Hussain Karbala Story In Hindi
इमाम हुसैन कर्बला स्टोरी इन हिंदी - कर्बला की घटना को युद्ध कहना ठीक नहीं होगा, एक तरफ तीन दिनों के भूखे प्यासे Imam Hussain के साथी और दूसरी तरफ हजारों की फ़ौज थी, जिसने क्रूरता और अत्याचार की सभी सीमाएं पार कर दी थीं, यहाँ तक कि Imam Hussain (Husayn ibn Ali) का छोटा बेटा जो प्यास के मारे तड़प रहा था, जब उसको पानी पिलाने इमाम नदी के पास गए तो हुरामुला नाम के सैनिक ने उस बच्चे अली असगर के गले पर ऐसा तीर मारा जो गले के पार हो गया।
Hassan Hussain Story in Hindi - इसी तरह एक-एक करके इमाम के सभी साथी शहीद होते गए। और अंत में शिम्र नाम के व्यक्ति ने Imam Hussain का भी सर काट कर उनको शहीद कर दिया, शिम्र बनू उमैय्या का कमांडर था। उसका पूरा नाम "Shimr Ibn Thil- Jawshan Ibn Rabiah Al Kalbi (also called Al Kilabi) (Arabic: ﺷﻤﺮ ﺑﻦ ﺫﻱ ﺍﻟﺠﻮﺷﻦ ﺑﻦ ﺭﺑﻴﻌﺔ ﺍﻟﻜﻠﺒﻲ ) था।
रिखब दत्त का महान बलिदान
यजीद के सैनिक Imam Hussain (Husayn ibn Ali) के शरीर को मैदान में छोड़कर चले गए थे। तब रिखब दत्त ने इमाम के शीश को अपने पास छुपा लिया था। यूरोपी इतिहासकार रिखब दत्त के पुत्रों के नाम इस प्रकार बताते हैं। [Karbala Story in Hindi]
- सहस राय
- हर जस राय
- शेर राय
- राम सिंह
- राय पुन
- गभरा
- पुन्ना
बाद में जब यजीद को पता चला तो उसके लोग Imam Hussain (Husayn ibn Ali) का सर खोजने लगे कि यजीद को दिखा कर इनाम हासिल कर सकें। जब रिखब दत्त ने सिर का पता नहीं दिया तो यजीद के सैनिक एक-एक करके रिखब दत्त के पुत्रों के सर काटने लगे, फिर भी रिखब दत्त ने पता नहीं दिया। सिर्फ एक लड़का बच पाया था। तत्पश्चात मुख़्तार ने इमाम के क़त्ल का बदला ले लिया था। तब विधि पूर्वक इमाम के सर को दफनाया गया था।
रिखब दत्त के इस बलिदान पर उन्हें सुल्तान की उपाधि दी गयी थी। इस बारे में “जंग नामा इमाम हुसैन” के पेज 122 पर लिखा हुआ है,
"वाह दत्त सुल्तान, हिन्दू का धर्म मुसलमान का ईमान !"
आज भी रिखब दत्त के वंशज भारत के अलावा इराक और कुवैत में भी रहते हैं, और इराक में जिस जगह ये लोग रहते है उस जगह को ‘हिंदिया’ कहते है। ये वर्णन विकीपीडिया पर इस तरह लिखा गया है-
तब से आज तक हुसैनी ब्राह्मण भी इमाम हुसैन के दु:खों को याद करके साथ मातम मनाते हैं। वहीं लोग ये भी बताते हैं कि इनके गलो पर कटने का कुदरती निशान होता है। और यही इनकी निशानी है।
Karbala Story in Hindi - सारांश और अभिप्राय
“शाहास्त हुसैन बदशाहस्त हुसैन, दीनस्त हुसैन दीं पनाहस्त हुसैनसर दाद नादाद दस्त दर दस्ते यजीद , हक्का कि बिनाये ला इलाहस्त हुसैन”
इतिहास गवाह है कि अत्याचार से सत्य का मुंह कभी बंद नहीं हो सकता है, वह दोगुनी ताकत से प्रकट होता है, जैसे कि-
कत्ले हुसैन असल में मर्गे यजीद है!
यह घटना पहली बार कानपुर में छपी थी।
Story had first appeared in a journal (Annual Hussein Report, 1989) printed from Kanpur (U.P) The article ''Grandson of Prophet Mohammed (PBUH)
लेख की प्रामाणिकता हेतु यहां एक सूची दी जा रही है, जिसकी मदद से आप विस्तार से जांच परख करके इस सच्चाई को स्वीकार कर सकते हैं।
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