द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा इस सवाल पर है कि हम अपेक्षाओं पर नियंत्रण कैसे रखें? आशा से ज्यादा अपेक्षा (Expectatio...
द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा इस सवाल पर है कि हम अपेक्षाओं पर नियंत्रण कैसे रखें?
आशा से ज्यादा अपेक्षा (Expectations) पाल लेने से अक्सर लोग बहुत परेशान रहते है।
आज प्रबुद्ध वर्ग के लोगों को भी अवसाद (Depression) में घिरकर अपनी जीवन-लीला समाप्त करते देखना आम सी बात हो गई है। दरअसल, आशा से ज्यादा अपेक्षाएं (Expectations) पाल लेना। ऐसी घटनाओं का मुख्य कारण होता है।
एक कंपनी के सीईओ की बड़ी अपेक्षा (Expectation) थी कि उनका बेटा फाइनेंस की पढ़ाई करके उनका बिजनेस संभाले। लेकिन बेटे ने स्पोर्ट्स को अपना करियर बना लिया और पिता उसके इसी निर्णय के सदमे से घोर अवसाद में चले गए। असल में, निराशा या क्रोध हमें तभी घेरते हैं, जब दूसरे व्यक्ति से तथाकथित अपेक्षित उत्तर नहीं मिल पाता। दूसरे को उसके मूल स्वभाव में स्वीकार कर पाना बहुत कठिन होता है। सच पूछे, तो हमारी खुशियां अपेक्षाओं की मोहताज हैं। आशा के अनुरूप बच्चों का रिजल्ट आया, तो खुशियां दोगुनी, अन्यथा नहीं। समयानुकूल प्रमोशन मिला तो खुश, नहीं तो उदासी ही उदासी।
दरअसल, असली और आंतरिक खुशी का एहसास करना है, तो अपनी अपेक्षाओं (Expectations) को काबू में रखना सीखना होगा और पूर्णता-अपूर्णता की स्थिति को एक सिक्के के दो पहलू समझकर स्वीकार करना होगा। हालांकि, इसका दूसरा पहलू यह भी है कि अपनों की उम्मीदें, अपेक्षाएं (Expectations) हमें कर्मपथ पर अग्रसर करती हैं। बच्चे माता-पिता की आकांक्षाओं (Aspirations) के अनुरूप ढलने में ऊर्जा के साथ-साथ प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। बस, इन अपेक्षाओं (Expectations) की पूर्ति के लिए दबाव नहीं बनाना चाहिए।
बहुचर्चित अमेरिकी
लेखक Jeff Kinney ने ‘Diary of a Wimpy Kid’ में लिखा है, किसी से सहयोग की आशा
करना या अपनी उम्मीद के अनुसार दूसरों को ढालने से कहीं अच्छा है कि हम खुद को ही
समर्थ बना लें।
- कविता विकास
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