द भ्रमजाल में आपका फिर से स्वागत है। [Hypothesis Vs. Theory] आज की चर्चा में हम जानेंगे कि परिकल्पना वैज्ञानिक थ्योरी कब बनती है? अगर किसी...
द भ्रमजाल में आपका फिर से स्वागत है। [Hypothesis Vs. Theory] आज की चर्चा में हम जानेंगे कि परिकल्पना वैज्ञानिक थ्योरी कब बनती है?
अगर किसी वैज्ञानिक को दुनिया की किसी घटना का कारण ढूंढना हो तो सबसे पहले वैज्ञानिक एक परिकल्पना अथवा हाइपोथिसिस तैयार करता है। फिर अपनी ही परिकल्पना को नाना विधियों से गलत साबित करने की कोशिश करता है। अगर उसे लगे कि मेरे सिद्धांत को गलत साबित नहीं किया जा सकता, तो वह अपनी परिकल्पना को संसार के सम्मुख प्रस्तुत करता है।
जब दुनिया भर के अन्य वैज्ञानिकों के समक्ष कोई नया सिद्धांत आता है तो उनकी सबसे पहली प्रतिक्रिया होती है - सिद्धांत को किसी भी तरह गलत सिद्ध करना, उसमें त्रुटियां ढूंढना। पर सिद्धांत तर्कों की परीक्षा उत्तीर्ण कर ले तो वैज्ञानिक समुदाय का अगला प्रश्न होता है कि - क्या तुम्हारा सिद्धांत प्रयोग में जांचे जा सकने वाली भविष्यवाणियां करता है?
अगर इस प्रश्न का उत्तर "नहीं" है तो बेशक आपका सिद्धान्त कितना भी सुंदर, सुलभ और प्रीतिकर हो - वह कूड़े के डब्बे में फेंक दिया जाएगा।
अगर सिद्धांत किसी भी रूप में परीक्षण करने योग्य अनुमान अथवा भविष्यवाणी करता है तो उसे खासकर कण भौतिकी में तो "5 सिग्मा" की परीक्षा पास करनी होगी। 5 सिग्मा अर्थात प्रयोगों में त्रुटि की संभावना 1 in 3.5 Million हो। यानी आपका सिद्धान्त 35 लाख प्रयोग करने पर भी एक समान ही रिजल्ट देना चाहिए। अगर लाखों प्रयोगों में दो-चार बार भी डेटा ने कुछ और रिजल्ट दे दिया तो आपके सिद्धांत पर "संदेहशील" होने का ठप्पा लगा कर ठंडे बस्ते में फेंक दिया जाएगा।
अगर कोई सिद्धांत तमाम दावों और भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में किये गए परीक्षणों पर खरा उतरता है, तब कहीं जा कर उसे "थ्योरी" का दर्जा प्रदान किया जाएगा।
जी हां - थ्योरी !! पहले प्रमाणित सिद्धांतों को "Law of nature" कहने की परिपाटी थी, जिसे अब Theory शब्द से Replace कर दिया गया है। अर्थात Theory वो - जो परीक्षण और प्रमाण पर खरी उतरे - मसलन Theory of Relativity, Quantum Theory, Theory of Evolution इत्यादि।
इतनी कठोर परीक्षाओं को पास करके सर्वमान्य हुए सिद्धांतों को भी गलत साबित करने का स्कोप हमेशा खुला रहता है। आप आइंस्टीन को गलत साबित करना चाहें तो कुछ नहीं करना - बस प्रकाश की स्पीड उसकी बताई गई वैल्यू से थोड़ी कम या ज्यादा ऑब्सर्व कर के दिखा दीजिये। एक मिनट में विज्ञान जगत आइंस्टीन को विज्ञान पुस्तकों से विदाई दे देगा। किसी पार्टिकल की वैल्यू बताई गई संख्या से अलग सिद्ध कर दीजिए या 60 लाख वर्ष पूर्व से पहले Homo Sapiens के अस्तित्व का कोई प्रमाण दे दीजिए- Quantum Theory और Evolution Theory को तुरंत डिब्बे में फेंक दिया जाएगा।
यह सब करके भी कोई विज्ञानी आहत नहीं होगा, कोई आपका "सर तन से जुदा" का नारा नहीं लगाएगा। कोई आपको "Devil's Advocate" "काफ़िर" या "मैकाले पुत्र" कह कर अपमानित नहीं करेगा। उल्टा हो सकता है कि आपको उस वर्ष का Nobel Prize भी मिल जाये और आप पर धन-सम्मान की वर्षा हो जाये।
सत्य के मार्ग पर चलने की यही नीति है- निष्कर्ष सदैव जांच के लिए प्रस्तुत रहे। जहां संशोधन हो सके- उसे स्वीकार करो। और जो अज्ञात है, उसके लिए बस इतना ही कहो- मैं यह नहीं जानता, पर जानने का प्रयास कर रहा हूँ।
फिलहाल संसार में विज्ञान के अलावा कोई ऐसी विधि या संस्था नहीं, जो साहस-विश्वसनीयता-आत्मावलोकन-विनम्रता के मानकों पर खरी उतरती हो। बस इसलिए मैंने संसार को जानने के लिए विज्ञान का चुनाव किया है।
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