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भारत में सूफ़ीवाद की उत्पत्ति कैसे हुई?

द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। [ Sufism ] आज की चर्चा में हम जानेंगे कि भारत में  सूफ़ी वाद की उत्पत्ति कैसे हुई? सूफ़ीवाद की शुरुआ...

Sufism

द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। [Sufism] आज की चर्चा में हम जानेंगे कि भारत में सूफ़ीवाद की उत्पत्ति कैसे हुई?

सूफ़ीवाद की शुरुआत

भारत में इस्लाम के फैलने का प्रमुख कारण 'तसव्वुफ़' था। तसव्वुफ़- अरबी शब्द है जिसका सामान्य अर्थ सूफ़ीवाद है। कुछ लेखकों का विचार है कि सूफ़ी शब्द सोफिया से बना है जिसका अर्थ है- बुद्धि। सूफ़ीवाद की शुरुआत 11वीं और 12वीं शताब्दी के दौरान हुई थी।

सूफ़ी मत तलवार से भी अधिक मारक था जिसने बिना खून बहाये अधिक से अधिक हिन्दूओं को अपनी ओर आकर्षित किया। ख़ासकर उन लोगो को जो हिन्दू धर्म से अंसतुष्ट/उपेक्षित थे किन्तु मूर्ति पूजा या स्थानीय कर्मकांड करते थे। यानि सामान्यतः हिंदू थे लेकिन विभिन्न जातियों में बंटे थे। यहां बहुत से रीति-रिवाज, परंपरायें बहुत पीछे से चले आ रहे थे। लोगो ने Islam अपनाया जरूर लेकिन अपने उन रीति-रिवाजों, परंपराओं को नहीं छोड़ा, उसे भी Islam में ढाल दिया।

जाट, राजपूत मुस्लिम समाजों में बहुतेरी परंपरायें वैसी की वैसी पा सकते हैं, जिनका मूल Islam से कोई नाता नहीं। जिनको गुरुओं की परंपरा में यकीन था, उन्होंने पीर बना लिये, जिन्हें मूर्तियाँ के आगे झुकने की आदत थी उन्होंने मजारों के आंचल में मंजिल तलाश ली।

ऐसा लगभग उन सभी देशों में हुआ था जिनकी अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान थी। उन्होंने अपनी सांस्कृतिक पहचान को, अपनी रीतियों परंपराओं को Islam के साथ शामिल कर लिया। जिसे सूफी मत या सूफ़ीवाद के रूप में एक अलग पहचान मिली।

यह इंसान को इंसान से जोड़ने वाला वह सिलसिला था जिसका प्रभाव बहुत तेजी से तुर्की, अरब, ईरान से ले कर भारत तक हुआ। इसके साथ जो कर्मकांड जुड़े वह उन्हीं दूसरी संस्कृतियों के घालमेल की वजह से थे, जहां लोगों ने अपनी पुश्तैनी परंपराओं को Islam से जोड़ दिया था।

उस दौर में जो भी खून-खराबा मुसलमानों द्वारा हुआ, वह सत्ता की भूख का नतीजा था लेकिन उसका उस इस्लामिक कट्टरता से कोई लेना-देना नहीं था, जिसका विकृत स्वरूप अब चरमपंथ या आतंकवाद के रूप में हम देखते हैं। एक दौर वह भी था जब अरबी भाषा का बोल बाला था, बगदाद ज्ञान का केन्द्र कहा जाता था। ज्ञान पर जैसा वर्चस्व आज पश्चिम का है तब वैसा ही वर्चस्व अरब जगत का हुआ करता था।

दसवीं शताब्दी के वजीर इब्ने उब्वाद के पास एक लाख से अधिक किताबें थीं, तब इतनी किताबें पूरे यूरोप के सभी पुस्तकालयों को मिला कर भी नहीं थी। अकेले बगदाद में वैज्ञानिक ज्ञान के तीस बड़े शोध केन्द्र थे। बगदाद के अलावा सिकंदरिया, यरूशलम, अलेप्पो, दमिश्क, मोसुल, तुस और निशपुर अरब संसार में विद्या के प्रमुख केन्द्र हुआ करते थे और Islam एक अलग ही रूप में अपनी मौजूदगी कायम किये था।

भारत में उस दौर में कुरान अरबी भाषा तक ही सीमित थी, जिसे अरबी सीख कर लोग सवाब के नजरिये से पढ़ लिया करते थे और हदीसों से आम इंसानों का बिलकुल भी कोई खास वास्ता नहीं था। बस मस्जिदों में कुछ खास किस्म की, अच्छाई पेश करने वाली हदीसें कभी जुमे, या शबे कद्र की रात को सुनाई जाती थीं और लोग बस वहीं तक सीमित रहते थे। या तब औरतों के बीच इज्तिमा और मिलाद जैसे इवेंट होते थे जहां कुछ अच्छी हदीसें ही दोहराई जाती थीं।

यानि तब यह शिर्क-बिदत जैसे मसले बहुत ही छोटे और लगभग नगण्य पैमाने पर थे और मुसलमानों की बहुसंख्य आबादी इससे अनजान अपने अंदाज में ही जी रही थी। अलग संस्कृतियों और परंपराओं के घाल-मेल से ही मुसलमानों में शिया, हनफ़ी, मलायिकी, साफ़ई, जाफ़रिया, बाक़रिया, बशरिया, खलफ़िया, हंबली, ज़ाहिरी, अशरी, मुन्तजिली, मुर्जिया, मतरुदी, इस्माइली, बोहरा, अहमदिया जैसी अनेकों आस्थाओं ने इस्लाम के दायरे में रहते अपनी अलग पहचान बना ली थी। शुद्धता का दावा करने वाले देवबंदी खुद उस विचारधारा की पहचान के साथ जीने के बावजूद इस सांस्कृतिक विविधता को स्वीकार कर के ही आगे बढ़ रहे थे।

सूफ़ीवाद की कुछ खास बातें:

  • सूफ़ी संत आंतरिक पवित्रता की बात करते हैं।
  • सूफ़ीवाद का मानना है कि ईश्वर प्रेमी (माशूक) का प्रिय है।
  • सूफ़ीवाद एक इस्लामी आध्यात्मिक परंपरा है जो 8वीं शताब्दी से चली आ रही है।
  • सूफ़ीवाद इस्लाम का एक संप्रदाय नहीं है, बल्कि आस्था की एक रहस्यमय शाखा है।
  • सूफ़ीवाद को असल पहचान अल ग़ज़ाली के समय से मिली। सूफ़ीवाद समूचे विश्व में फैला हुआ है।
  • सूफ़ी (सूफ़ी मत के अनुयायी) ध्यान, प्रार्थना और आत्म-शुद्धि के माध्यम से अल्लाह से जुड़ना चाहते हैं।

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