द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम पढ़ेंगे बेहतरीन 10+ Motivational Short Stories in Hindi. Motivational Short Stor...
Motivational Short Stories in Hindi
आपकी कीमत
गौतम बुद्ध से एक बार उनके प्रिय शिष्य ने पूछा जीवन का मूल्य क्या है?
गौतम बुद्ध ने उसे एक चमकता हुआ पत्थर दिया और कहा- इसका मूल्य पता करके आओ। लेकिन इसको बेचना मत।
- शिष्य बाजार में एक अमरूद बेचने वाले के पास गया और उस पत्थर की कीमत पूछी। उसने कहा- इसके बदले 12 अमरूद ले जाओ।
- फिर वह एक आलू बेचने वाले के पास पहुंचा। उसने उसकी कीमत एक बोरी आलू लगाई।
- इसके बाद वह एक सुनार के पास गया, तो उसने झट से कहा- 50 लाख में मुझे बेच दो। मना करने पर उसने दो करोड़ तक मूल्य लगाया।
- आगे वह शिष्य एक हीरा-जौहरी के पास गया। जौहरी ने पहले एक लाल कपड़ा बिछाया, फिर उस पत्थर को, जो कि रूबी थी, उस पर रखकर उसकी परिक्रमा की और माथा टेका। फिर कहा- कहां से ले आए यह बेशकीमती रूबी? इस पूरे राज्य को बेचकर भी इसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती।
हैरान-परेशान शिष्य बुद्ध के पास पहुंचा और सारी बात बताई। बुद्ध ने कहा- जीवन रूबी है, पर ध्यान रखना कि सामने वाला अपनी हैसियत, अपने ज्ञान और अपनी समझ के हिसाब से तुम्हारी कीमत लगाएगा।
अक्सर हम हताश हो जाते हैं, जब कोई हमारी सही कीमत नहीं आंकता।
अलीबाबा के संस्थापक और दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक Jack Ma को Harvard University ने 10 बार दाखिला देने से मना किया। नौकरी के लिए वह 30 से ज्यादा बार ठुकराए गए। मगर Jack Ma ने अपनी निगाहों में अपना मूल्य कभी कम नहीं होने दिया।
बर्नार्ड शॉ अक्सर एक चेतावनी देते थे कि आपको आंकने की कोशिश करने वाले दुनिया में हजारों मूर्ख हैं, लेकिन उन मूर्खों में शामिल नहीं होना है।
जो कल था, वह आज नहीं है!
एक साधु देश में यात्रा के लिए पैदल निकला हुआ था। एक बार रात हो जाने पर वह एक गाँव में आनंद नाम के व्यक्ति के दरवाजे पर रुका।
आनंद ने साधू की खूब सेवा की। दूसरे दिन आनंद ने बहुत सारे उपहार देकर साधू को विदा किया।
साधू ने आनंद के लिए प्रार्थना की - "भगवान करे तू दिनों-दिन बढ़ता ही रहे।"
उस साधू की बात सुनकर आनंद हँस पड़ा और बोला- "अरे, महाराज जी! जो है यह भी कल नहीं रहने वाला।" साधू आनंद की ओर देखता रह गया और वहाँ से चला गया।
दो वर्ष बाद वहीं साधू फिर आनंद के घर गया और देखा कि वहां का सारा वैभव समाप्त हो चुका है। स्थानीय लोगों से पूछने पर पता चला कि आनंद अब बगल के गाँव में एक जमींदार के यहाँ नौकरी करता है। साधू आनंद से मिलने गया।
आनंद ने अभाव में भी साधू का स्वागत किया। झोंपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया। खाने के लिए सूखी रोटी दी। दूसरे दिन जाते समय साधू की आँखों में आँसू थे। साधू कहने लगा- "हे भगवान ! ये तूने क्या किया?"
आनंद पुन: हँस पड़ा और बोला- "महाराज आप क्यों दु:खी हो रहे है? महापुरुषों ने कहा है कि भगवान इन्सान को जिस हाल में रखे, इन्सान को उसका धन्यवाद करके खुश रहना चाहिए। समय सदा बदलता रहता है और सुनो! यह भी नहीं रहने वाला।
साधू मन ही मन सोचने लगा - "मैं तो केवल भेष से साधू हूँ। सच्चा साधू तो तू ही है, आनंद।"
कुछ वर्ष बाद साधू फिर यात्रा पर निकला और आनंद से मिला तो देखकर हैरान रह गया कि आनंद तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है। मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहाँ आनंद नौकरी करता था वह सन्तान विहीन था, मरते समय अपनी सारी जायदाद आनंद को दे गया।
साधू ने आनंद से कहा- "अच्छा हुआ, वो जमाना गुजर गया। भगवान् करे अब तू ऐसा ही बना रहे।"
यह सुनकर आनंद फिर हँस पड़ा और कहने लगा - "महाराज ! अभी भी आपकी नादानी बनी हुई है।"
साधू ने पूछा- "क्या यह भी नहीं रहने वाला?"
आनंद उत्तर दिया - "हाँ! या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा। कुछ भी शाश्वत नहीं है।
आनंद की बात को साधू ने गौर से सुना और चला गया।
साधू कई साल बाद फिर लौटता है तो देखता है कि आनंद का महल तो है किन्तु अब कबूतर उसमें गुटरगूं कर रहे हैं, और आनंद की मृत्यु हो चुकी है। बेटियाँ अपने-अपने घर चली गयीं, बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है।
साधू सोचता है "इंसान किस बात का अभिमान करता है? किस बात पर इतराता है? यहाँ कुछ भी हमेशा के लिए नहीं होता है। दु:ख हो या सु:ख कुछ भी सदा के लिए नहीं है। न मौज रहेगी और न ही मुसीबत।"
अब मैं आनन्द की तस्वीर देख कर धन्य होना चाहता हूँ।
साधू दूसरे कमरे में जाता है और वहां देखता है कि आनंद ने अपनी तस्वीर पर लिखवा रखा था कि—
"अंत में यह भी नहीं रहेगा।"
साधू मन ही मन सोचने लगा- "धन्य है आनंद! तेरा सत्संग। हे, सतगुरु! मैं तो झूठा साधू हूँ, असली फकीरी तो तेरी जिन्दगी है। साधु ने झोले से निकाल कर तस्वीर पर कुछ फूल चढ़ाए और दुआ मांगी।"
प्राण-प्रतिष्ठा (Dignity of life)
रात के एक बजे पंडित जी के घर की किसी ने कुंडी खड़काई। पंडित जी थोड़े घबरा गए, मन में अचानक से कई तरह के प्रश्न उठ खड़े हुए कि "इतनी रात कौन आया? क्यों आया है? किस लिए आया है? पंडित जी की पत्नी और बच्चे भी जग गये। पंडित जी ने कुंडी के छेद से बाहर झांका। 12 साल का एक लड़का बाहर खड़ा था।
पंडित जी ने दरवाजा खोला। लड़का बाहर हाथ जोड़कर खड़ा रहा। वह बहुत घबराया हुआ था। पंडित जी की पत्नी ने उसे अंदर आने के लिए कहा। पूछा, क्या हुआ? इतना घबराए हुए क्यों हो?
वह रोता हुआ बोला, मां मर गयी है।
पंडित जी हैरान थे कि आधी रात को पंडित जी का वहां क्या काम। संस्कार तो सुबह होगा और संस्कार वाला तो दूसरा पंडित है। इसने मेरी कुंडी क्यों खड़काई।
बेटा, मुझे बताओ, मैं क्या कर सकता हूं। पंडित जी ने सांत्वना देते हुए लड़के से पूछा।
पंडित जी, आप मेरी माँ में प्राण प्रतिष्ठा कर दीजिये। मेरे पास सिर्फ मां ही थी। वह भी चली गयी। लड़का एक सांस में बोल गया।
"लेकिन बेटा", पंडित जी ने कुछ कहना चाहा...
मगर लड़का बदस्तूर बोलता रहा। "परसो आपने नए मंदिर में भगवान जी की पत्थर की मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा* की थी। मुझे पता होता कि आप प्राण दे सकते हैं तो मैं पिता जी को कभी न मरने देता। मां भी पिता के बिना आधी हो गयी। अब मां को मरने नहीं दूंगा। पंडित जी, आप मेरे साथ चलिए।"
लड़का बोलता रहा और पंडित जी जड़ खड़े रहे!
*प्राण-प्रतिष्ठा का मतलब है, देवी या देवता को मूर्ति में विराजमान करना। प्राण-प्रतिष्ठा के बिना कोई भी मूर्ति मंदिर में स्थापित नहीं होती। माना जाता है प्राण प्रतिष्ठा के दौरान, मूर्ति में प्राण बस जाते हैं।
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