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दुर्गा कौन थी? नवरात्रि का पूरा सच क्या है?

The Bhramjaal में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम जानेंगे दुर्गा कौन थी? नवरात्रि का पूरा सच क्या है? साथ ही जानेंगे कि महिषा...

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The Bhramjaal में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज की चर्चा में हम जानेंगे दुर्गा कौन थी? नवरात्रि का पूरा सच क्या है?

साथ ही जानेंगे कि महिषासुर कौन था? दुर्गा से वेश्या का क्या सम्बन्ध है? दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी क्यों कहा जाता है? 

किसी ने कहा है कि -

हक यह नहीं जो बताया जा रहा है !
हक वोह है जो छुपाया जा रहा है !!

आज हम इस लेख के जरिए जन मानस के कई सवालों के जवाब जानने का प्रयास करेंगे।

  • क्यों दुर्गा प्रतिमा के लिए एक वेश्या के ही घर की मिट्टी की जरूरत पड़ती है?
  • क्यों वेश्या के घर की मिट्टी के बिना बनी दुर्गा प्रतिमा पूजा अयोग्य मानी जाती है?
  • क्यों दुर्गा प्रतिमा बनाने के लिए बंगाल में किसी वेश्या के घर से मिट्टी लाना जरूरी है?
  • क्यों मूर्ति कलाकार दुर्गा प्रतिमा बनाने से पहले उसकी मिट्टी में वेश्या के चौखट की मिट्टी मिलाता है?
  • क्यों Prostitutes दुर्गा को अपना आदर्श मानती हैं और दुर्गा बनने का स्वांग करती हैं?

आइये जानते हैं -

दुर्गा पूजा के पीछे का पूरा सच क्या है?

नवरात्र एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातों का समय'। आप जानते होंगे कि इन दिनों दुर्गा के नौ अवतारों की नौ दिन तक बारी-बारी पूजा की जाती है। इसी अवधि में सार्वजानिक स्थलों पर दुर्गा मूर्तियों की स्थापना भी होती है, जहाँ पर शाम से तरह-तरह के धार्मिक गाने व भजन सुनाई पड़ते हैं।

नवरात्र में माता के भक्त श्रद्धा व तन्मयता के साथ पूजा करते देखे जाते हैं, साथ ही चढ़ावा भी चढ़ाते हैं। 9 दिनों के बाद दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन विधि पूर्वक किया जाता है।

दुर्गा की जिन मूर्तियों की स्थापना की जाती है उन में देवी द्वारा अन्य अस्त्र-शस्त्र धारण करने के अलावा महिषासुर का मर्दन (वध) भी दिखाया जाता है। महिषासुर के बारे में यह प्रचारित किया गया है कि वह बहुत बुरा असुर (राक्षस) था जिस का वध दुर्गा ने चामुंडा देवी के रूप में किया।

देखा जाता है कि ब्राह्मणों ने अपने साहित्य में अपने विरोधियों का चित्रण बहुत बुरे स्वरूप में किया है। वेदों में भी आर्यों ने भारत के मूल निवासियों को असुर, दानव और राक्षस तक कहा है।

दरअसल यह सब शासक वर्ग की अपने विरोधियों को बदनाम करने की सोची समझी रणनीति का हिस्सा होता है।

दुर्गा पूजा का पहला आयोजन कब हुआ?

First Durga Puja of Bengal : कई जानकारों के अनुसार 23 जून 1757 के बाद 1790 में राजाओं, सामंतों और जमींदारों ने भव्य तरीके से पहली बार बंगाल के नदिया जनपद के गुप्ती पाड़ा में सार्वजनिक दुर्गा पूजा का आयोजन किया था।

महिषासुर कौन था?

बहुजन साहित्यकारों के अनुसार भारत के मूल निवासियों में महिषासुर बंगाल के सावाताल अथवा संथाल में आदिवासियों का अत्यंत बलशाली राजा था। विदेशी ब्राह्मण इसके राज्य पर कब्जा करना चाहते थे, जिसके लिए कई बार युद्ध किया। लेकिन ब्राह्मणों को हमेशा हार का सामना करना पड़ा।

इतिहास गवाह है कि जिसे बल से नहीं जीता जा सकता है, उसे सुरा व सुंदरी के माध्यम से जीता जा सकता है। वैसे ये ब्राह्मणों की शैतानी नीति है। कई बार हारने के बाद ब्राह्मण महिषासुर के शक्ति को समझ गये थे। इसलिए वहां सुरा-सुंदरी वाले शैतानी नीति को अपनाया गया।

ब्राह्मणों ने दुर्गा जो कि एक अत्यंत सुंदर वेश्या थी, को एक षड़यंत्र के तहत महिषासुर को मायाजाल में फाँसकर उसकी हत्या करने के लिए भेजा।

दुर्गा ने 8 रात सुरा पिलाते हुए, कई नाटक करते हुए महिषासुर के साथ रात बिताई। नौवीं रात को मौका मिलते ही उस वेश्या ने महिषासुर का काम तमाम कर दिया यानी हत्या कर दी। इसलिए दुर्गा नवरात्रि मनाई जाती है।

अब चूँकि दुर्गा एक वेश्या थी, अतः वेश्या के घर से मिट्टी लाने की एक परंपरा बन गई, जो आज भी विद्यमान है।

मूल निवासी राजा महिषासुर की हत्या दुर्गा ने किया जिस से ब्राह्मण उस राज्य पर कब्जा करने में कामयाब हुए।इसलिए ब्राह्मणों ने मूल निवासियों से उनके पूर्वजों की हत्यारिन दुर्गा की पूजा ही करा दिया।

  • जेएनयू के वामपंथी छात्रों ने 2013 में महिषासुर शहादत दिवस मनाया था।

बहुजनों का अहम सवाल है कि किसी ने आज तक ऐसे किसी मनुष्य को देखा है जिसके 8 हाथ, 3 गर्दन, आधा शरीर मनुष्य का और आधा जानवर का, गर्दन हाथी का इत्यादि हो? आदिम मानव काल में भी जायेगे, तब भी ऐसा किसी मनुष्य का जिक्र नहीं मिलता है। तब सोचिए, ऐसे प्राणियों की पूजा कैसे शुरू हो गई?

इसका मतलब साफ है कि ब्राह्मण, मूल निवासियों के दिमाग में इतने हावी हैं कि उनके दिमाग में बुद्धि के जगह गोबर भर दिया है। जिससे कि खुद से सोचने और समझने की शक्ति चली गई है। अंधभक्त हो गये हैं।

कई लोग ऐसे अंधभक्त है कि जानने के बावजूद भी इसे अपने बाप दादाओं की परम्परा मानकर ढो रहे हैं। अरे तुम्हारे बाप दादाओं से पढ़ने लिखने का अधिकार छीन लिया गया था। इसलिए उन्हें जो बताया गया, मानते गये। तुम्हें तो पढ़ने लिखने का अधिकार है, पढ़-लिख कर भी गोबर को लड्डू मान कर खाओगे तो पढ़ना-लिखना सब बेकार है।

Note:- इस लेख का उद्देश्य जन भावनाओं को ठेस पहुंचाना कदापि नहीं है।

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